अमिता 'अशेष' की कलम से विजयादशमी पर प्रासंगिक विशेष मुक्तक ....

अमिता 'अशेष' की कलम से विजयादशमी पर प्रासंगिक विशेष मुक्तक ....

 अमिता 'अशेष' की कलम से विजयादशमी पर प्रासंगिक विशेष मुक्तक ....

* 1-

घोर तपस्वी, अतुलित ज्ञानी , वो महा- शूरवीर सेनानी था। 
तीनों लोकों में उसकी क्षमता का , नही कोई भी सानी था।
जिसकी लंका का डंका बजता था , सभी दिशाओं में।
हुआ समूल विनाश उसका,क्योंकि वो रावण अभिमानी था।

 * 2 -

त्याग कर शेष शैया का शयन , वैकुण्ठ से प्रस्थान करो।
धरो फिर रूप मानव का,नारायण सृष्टि का उत्थान करो।
रावण से भी अधम असुर,आज अगणित घूमें धरणी पर।
प्राण हरो दानव-दल के  'हे राम' शर-शायक संधान करो।

   * कवयित्री - अमिता 'अशेष'
                          ( लखनऊ )