गज़ल : मेरा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है

गज़ल : मेरा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है

गज़ल : मेरा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है

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मेरा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है। 
मगर कुछ राब्ता रखना नहीं है। 

सफ़र जितना भी चाहे अब कठिन हो, 
हमें चलना ही है रुकना नहीं है। 

कहो जो तुम उसे ही हम कहेंगे, 
हमारा मन कोई बच्चा नहीं है। 

कभी तुम देखना मेरी ग़ज़ल को, 
कोई एक शेर भी  झूठा नहीं है। 

जो समझो खुद को तो समझा करो तुम, 
तुम्हारी हर जगह सत्ता नहीं है। 

नहीं अब आजमाओ सब्र मेरा, 
न समझो अब कोई रस्ता नहीं है। 

शज़र सा मान लें कैसे उसे हम, 
किसी पर छाँव जब करता नहीं है। 

बशर हैं ' भावना ' अपनी कहेंगे, 
हमारा हौंसला टूटा नहीं है। 

* रचनाकार : भावना मेहरा                         (आगरा )