कविता : हर लो सर्व क्लेश

कविता : हर लो सर्व क्लेश

कविता : हर लो सर्व क्लेश

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गौरी सुत गणेश
अष्टविनायक हे विघ्नेश्वर, गौरी सुत गणेश।
करूं वंदना आरती तेरी, हर लो सर्व क्लेश।।

नहीं चाहिए धन और दौलत, ना चांदी ना सोना।
नहीं चाहिए महल अटारी, ना मखमल पर सोना।
जिसमें मेरा कुल सुखमय हो,उतना दो सर्वेश।
करूं वंदना आरती तेरी, हर लो सर्व क्लेश।।

दुखियों के दुख हरने वाले, कहलाए दुख हर्ता।
बाधा- विपदा दूर भगाएं, कहलाए विघ्नहर्ता।
दीप जला दो मन मंदिर में, इच्छा कुछ ना शेष।
करूं वंदना आरती तेरी, हर लो सर्व क्लेश।।

* विनय शर्मा दीप
(कवि एवं पत्रकार,मुंबई)