कविता : श्रृंगार

कविता : श्रृंगार
कवयित्री: रजनी श्री बेदी

कविता : श्रृंगार

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मैं करती हूँ श्रृंगार प्रिये,
तुम आ जाओ मेरी जान प्रिये।
आईने में तेरी सूरत दिखती,
बाहों का दो गलहार प्रिये।

माथे बिंदिया चमके तुमसे,
कंगना मेरे खनके तुमसे।
सूनी पायल तुमसे रूठी है,
करो आकर उसे बलिहार प्रिये।

यौवन मेरा रीता रीता,
सावन भी  तेरे बिन बीता।
थोड़ा सा मैं भी करती हूं,
करो थोड़ा तुम मनुहार प्रिये।

 सारे रँग मेरे ही तुमसे हैं,
नहीं अब जमते जो झुमके हैं।
नैना कजरारे बहते हैं,
करो आ के मुझे रुखसार प्रिये।

मुझे सजना और सँवरना है,
तेरे हाथ से मांग को भरना है।
मेरे गेसू तुमसे कहते हैं,
कुछ उनसे करो तुम प्यार प्रिये।
* कवयित्री: रजनी श्री बेदी
       (जयपुर-राजस्थान)