कविता : निश्चय ...

कविता : निश्चय ...
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी 

          कविता : निश्चय ...

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जिंदगी है बड़ी आसां.. कह के कभी,
रूह को छलती नहीं रूह को छलती नही।

जाना जब से है ये मेरी औकात क्या,
आस कोई मेरे दिल में पलती नहीं।

आसमाँ जितने ग़म मैंने हँस के सहे,
शर्त  मेरी लगी ऐसी  तक़दीर से।

जो मिला न मुक़द्दर से मेहनत से पा,
हाथ मलती नहीं हाथ मलती नही।

कोरा कागज़ थी मैं तो सुकूँ था बहुत,
मिले जुल्मों को लिख के परेशान हूँ।

हार रूह भी मेरी अब तो पत्थर हुई,
बात मेरी भी अब उसको  खलती नहीं।।

रास्ते सब दिखाते जो उनको पसन्द,
छिप गई हार के खुद को ढूंढूं कहाँ।

काफिले यू तो हर रोज़ निकले यहाँ,
संग किसी के मै अब खुद ही चलती नही।

नूर चेहरे पे था जो खुदा ने दिया,
दे के ताने वो मुझसे जुदा कर दिया।

आज उनकी वजह से ही फौलाद हूँ,
 दिन के जैसे कभी अब मैं ढलती नहीं।

कुछ इरादों ने मुझको है पर्वत किया,
खींचते अब भी कुछ हैं चिता से मुझे।

देती रजनी को दुनिया  दुआएँ बहुत,
बला ज़िद्दी है ऐसी के टलती नहीं।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी 

      (जयपुर-राजस्थान)