कविता : कटहल

कविता : कटहल

         कविता : कटहल
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माना ये ऊपर से खुरदरे हैं,
मगर अंदर से रसभरे हैं।

यह फल सारे फलों में निराला है,
क्योंकि इसका स्वाद सबसे आला है।

हमेशा सबका मान रखता है,
दिव्यांगों का भी ध्यान रखता है।

जमीन से आसमान तक फलता है,
वजन-आकार में,इसका सिक्का चलता है।

इसके साथ एक चमत्कार है,
एक ही पेड़ में कई आकार है।

दुनिया का सबसे अजूबा फल है,
हां साहब, ये हमारा कटहल है।

इस फल में गुण हैं बहुत भारी,
पका लो तो फल,कच्चा हो तो तरकारी।

हर समय रखता है खुद को तैयार,
चाहे सिरका में डालो या बनाओ अचार।

शादियों में सब्जी की शान होता है,
शाकाहारी भोजन की जान होता है।

जो तुझे देखता है वहीं रुक जाता है,
क्योंकि तू फल पाकर झुक जाता है।

कहीं छोटे हैं तो कहीं बड़े हैं,
जैसे भी हैं, स्वाभिमान से खड़े हैं।

बचपन की सब्जी निराली है,
पक गए तो महकती थाली है।

तेरा कोई लब्बोलुआब नहीं है,
जैसे भी खाओ तेरा ज़बाब नहीं है।

विटामिन बी और सी से भरपूर होते हैं,
कटहल के सेवन से कई रोग दूर होते हैं।

ये हृदय रोग को ट्रोल करता है,
बढ़ी हुई बीपी को कंट्रोल करता है।

अल्सर,मधुमेह से राहत दिलाता है,
इसमें फाइबर -प्रोटीन पाया जाता है।

शरीर से सूजन भगाता है,
कब्ज़ से राहत दिलाता है।

त्वचा की बीमारियों पर भारी है,
हड्डी के लिए बहुत गुणकारी है।

वैसे तो पोटैशियम का खजाना है,
मगर एलर्जी वालों तुम्हें नहीं खाना है।

गुणों के खजाने को कटवाएंगे,
तो भला ये फायदे कैसे पाएंगे?

जिसने खून पसीने से सींचा,
तैयार किया कटहल का बगीचा।

खुद खाइए और हाट में बेचिए,
नाराज किस्मत को अपनी तरफ खींचिए।

हम आधुनिकता में झूल गए हैं,
कटहल जैसे फल को भूल गए हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा व वजनदार फल है,
दक्षिण पूर्व एशिया से आया हमारा कटहल है।

आओ खुद भी जागें,औरों को भी जगाएं,
दो-चार कटहल के पेड़ अपने बगीचे में लगाएं।

* कवि : सुरेश मिश्र  (मुम्बई  )      

   ( प्रसिद्ध मंच संचालक एवं हास्य- व्यंग्य कवि )