मातृ दिवस पर देश की प्रख्यात कवयित्री सुमीता प्रवीण की कलम से एक विशेष रचना - मां का जाना !

मातृ दिवस पर देश की प्रख्यात कवयित्री सुमीता प्रवीण की कलम से एक विशेष रचना - मां का जाना !

मातृ दिवस पर देश की प्रख्यात कवयित्री सुमीता प्रवीण की कलम से एक विशेष रचना - मां का जाना !

************************

ज़िंदगी भर माँ बाप बुलाते रहे
कभी जा न पाते
कामकाज में उलझे रह जाते
माँ फोन करती कब आ रही है?
आजा तुझे देखे कई दिन हो गए
पापा बीमार रहने लगे हैं
हरदम तुझे याद करने लगे हैं

कभी बेटे की एक्जाम 
तो कभी बिटिया की पढ़ाई के नाम
हम मजबूर हो जाते 
और बच्चो में उलझ उनसे दूर हो जाते 

जब  बच्चे सेटल हो जाते हैं
तब कहीं जाकर हम फ्री हो पाते हैं
अब जब माँ के पास जाने की सोचते हैं
तब तक माँ बाप ही चले जाते हैं

अब फ्री हूँ, तो मायके आती हूँ बार- बार
सब हैं पर मां नहीं,तस्वीर में उनके है चढ़ा हार
पता है माँ ने माफ कर दिया होगा
अपना दिल साफ कर लिया होगा
मगर नहीं कर पाते हैं हम खुद को माफ
शायद यही है ईश्वर का इंसाफ
माँ के जाने के बाद जाना 
माँ का जाना...

* कवयित्री : सुमीता प्रवीण ( मुम्बई )