कविता : मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया

कविता : मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया

कविता : मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया

***************************
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया 
झूठ था फरेब था 
नशे का हुजूम था 
गिन-गिन के सबका हिसाब किया 
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया  ।

खुद में मद था 
गुरूर बेहद था 
सब वहम को चूर-चूर किया 
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।

लोभ तृष्णा, काम वासना का शिकार था 
मुझसे ही सब चलता है 
इस सोच से बिमार था 
हर बुरी शह को मिटा दिया 
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।

बहुत बोझ लेकर चल रहा था 
हर अपने को छल रहा था 
छल कपट से खुद को आज़ाद किया 
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।

* कवि : राजेश कुमार लंगेह

             ( बीएसएफ)