कहानी : भेदभाव !

कहानी : भेदभाव !
लेखिका- कविता सिंह

          कहानी : भेदभाव !
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   सुनंदा आज बहुत खुश थी, वह अपने बेटे मानव की शादी के लिए लड़की जो देखने जाने वाली थी। उसके उत्साह का पारावार नहीं था।

उसका बेटा मानव खूब पढ़ा- लिखा, हैंडसम और शरीफ नौजवान  था । इसलिए सुनंदा को बहू भी बहुत अच्छी चाहिए थी। जो अच्छी होने के साथ -साथ ऐसे संस्कारों वाली भी हो कि हमेशा ससुराल में घूँघट भी करके रखे। सुनंदा की यही तमन्ना थी।

मानव की छोटी बहन, अपनी माँ सुनंदा को बहुत समझाया करती थी कि माँ ये सब गलत है, भैया की शादी के लिए ऐसी लड़की का सपना मत देखो कि आज के युग में वह घूंघट में रहे। मैं खुद अपने ससुराल में घूँघट करना नहीं चाहूँगी....पर उसकी माँ बिल्कुल सहमत नहीं  थी।

खूब तैयार होकर दरवाजे की ओर बढ़ते हुए सुनंदा बोली " सब लोग चलोे जल्दी , लड़की वाले हमारा इंतजार कर रहे होंगे.....। "

थोड़ी देर में ही सभी लोग लड़की देखने उसके घर पर पहुंच गए । दरवाजे पर पहले से ही सारिका ( लड़की)  के मम्मी -पापा उन सबके स्वागत के लिए खड़े थे। अभिवादन के बाद सभी अंदर ड्राइंग रूम में चले आये और सोफे पर  बैठ गए।

 मानव की माँ कुछ देर बाद उत्साहपूर्वक बोली " अरे , अब मेरी होने वाली बहू को तो बुलाओ , जिसे देखने हमलोग इतनी दूर आये हैं। "

सारिका की माँ ने यह सुना तो मुस्कुराकर 'जी' कहते हुए तुरंत सोफे पर से उठी और अंदर किचन की ओर बढ़ गई। 
कुछ ही पलों बाद नीले रंग का पंजाबी सूट पहने एक अत्यंत सुंदर व आकर्षक लड़की नजरें झुकाए, हाथों में  चाय की प्यालियों की ट्रे  लिए उन सबके पास आई।
 सारिका को इस सूट में देखकर मानव की माँ को बहुत गुस्सा आया । उसे आशा थी कि लड़की साड़ी पहनकर सबके सामने आएगी। इसी बात पर सारिका को पहली नजर में ही रिजेक्ट करके वह सबसे  घर चलने को कहने लगी । उसके बर्ताव से सभी हतप्रभ दे कि आखिर ऐसा हुआ क्या, जो सुनंदा इस तरह का व्यवहार कर रही है।

इधर मानव को लड़की तो बहुत पसंद आई थी , पर अपने परिवार के लोगों से कह नहीं पाया था।
सभी वापस घर  लौट आए थे।

 यहां मानव की माँ कहने लगी " हम वहाँ अपने बेटे की शादी नहीं कर सकते , तमीज ही नहीं है उस लड़की में बिल्कुल... सबके सामने सूट में ही आ गई। और उसका रंग भी तो एकदम दबा- दबा सा था। वह मेरी बहू बनने लायक ही नहीं है। "
 
मानव यह सुनकर विचलित सा हो गया था। उसके सब्र का बाँध टूट चुका था। वह अब बोल पड़ा " माँ मुझे तो सारिका बहुत पसंद आई, क्या कमी है उसमें.. रही बात घूँघट की तो आज के समय में घूँघट कौन सी लड़की करती है ?  और बात करें रंग की तो हमारी बहन का भी रंग तो दबा हुआ ही है न ,कल को अगर यही बात उसकी ससुराल वाले बोलने लगें तो ? "

ये सुनकर सुनंदा को मानव पर क्रोध आने लगा , वह झुंझलाकर बोली " ठीक है, तुमको लड़की बहुत पसंद है तो तुम अकेले शादी कर लो , हमलोग नहीं आएंगे तुम्हारी शादी में.....!"

मानव यह सुनकर कुछ नहीं बोला। पर मन ही मन उसने कोई फैसला जरूर कर लिया था।
फिर अगले ही  दिन मानव ने एक मंदिर में सारिका से शादी कर ली और उसे साथ लिए अपने घर पर आ गया।

दरवाजे पर घंटी बजी तो उसकी बहन ने  दरवाजा खोला था। वह मानव और सारिका को देखकर चौंकते हुए बोली  "भाई आप और साथ में सारिका..... आप दोनों ने शादी कर ली ... ?"

तभी सुनंदा भी भीतर से पैर पटकते हुए तेजी से पास चली आई और चिल्लाते हुए बोली "तुम दोनों अभी के अभी मेरे घर से चले जाओ, तुम लोगों की शक्ल भी मैं नहीं देखना चाहती हूं...।"

किसी तरह मानव की बहन ने उसे समझा बुझाकर शांत करवाया कि " माँ एक ही बेटा है आपका, आप खुद रह पाओगी इसके बिना....?"

सुनंदा ने कोई जवाब नहीं दिया और सोफे पर बैठकर कुछ सोचने लगी। उसकी समझ मे नहीं आ रहा था कि इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करे।

इधर मानव और सारिका उसकी ओर देखे बिना अंदर अपने कमरे में चले गए।

सुनंदा ने अब अगले दिन से ही मानव की गैरहाजिरी में अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया था। सारिका को सुबह -शाम अब हर रोज बेवजह उसकी गालियाँ सुननी पड़तीं थीं। सुनंदा के ताने उसके कानों में तेज़ाब की तरह उबलते रहते थे। पर सारिका सब सहती रही । उसने कभी पलटकर जवाब नहीं दिया।

एक दिन रात को घर के सारे लोग किसी पार्टी में गए हुए थे। घर में रह बस सुनंदा व सारिका ही थे.. सास और बहू ...सारिका अपने रूम में लेटी थी ।

  तभी उसे अपनी सास सुनंदा  के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी।

"अरे बाप रे , मर गई मैं, मेरी हड्डी टूट गई...।"

सारिका यह सुनकर घबरा गई और फुर्ती से बिस्तर पर से उठकर लगभग  दौड़ते हुए बाहर आई तो उसने देखा कि उसकी सासू माँ ऊपर के कमरे की ओर जाती हुई सीढ़ियों पर से लुढ़ककर नीचे आ गिरी थी। 
 सुनंदा का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए सारिका ने कहा " माँ जी, उठ जाइए, चलिए आपको कमरे तक छोड़ आऊं। ज्यादा चोट लगी हो तो डॉक्टर को ले आऊं।"

पर यहाँ भी उस बेचारी को गाली ही खानी पड़ी थी। बावजूद इसके उस दिन से सारिका ने अपनी सासू माँ की भरपूर सेवा की। दिन -रात सुनंदा जो भी कहती, सारिका वह करती रहती थी। सुनंदा की जली-कटी ने उसे विचलित नहीं किया।

पर समय बीतने के साथ सारिका का सेवा-भाव देखकर सुनंदा लज्जित हो गई थी। उसको अब खुद पर क्रोध आने लगा था। उसे लग रहा था कि वह बेवजह ही मासूम सारिका से नफरत कर रही थी। अपनी गलत सोच व ज़िद के कारण अपने इकलौते बेटे की सुंदर व कर्मठ पत्नी यानि सारिका से वह कितना दूर हो गई थी। उसे ग्लानि महसूस हो रही थी। 

एक दिन सुनंदा ने सारिका को अपने पास बिठाते हुए रुंधे गले से उससे कहा  "बहू, तेरे लिए मेरे भीतर कितनी बुरी सोच थी, जाने कितना ज़हर भरा था। माफ कर दे मुझे... गलतियां माँ से भी हो जाती हैं कभी-कभी, अपनी बेवजह की ज़िद के चलते तेरे जैसी संस्कारी बहू  से कितना फासला कर लिया था मैंने, मुझ अभागिन को क्षमा कर दो बेटा ।"
 कहते हुए सुनंदा सुबक पड़ी थी, उसने अपना हाथ जोड़ लिया था। 
सारिका ने यह सब सुना तो उसकी आंखें भी भीग गईं थीं , वह बोली  " नहीं मां जी ,कैसी बातें कर रही हैं आप.... बड़ों का हाथ तो सिर्फ आशीर्वाद देने के लिए उठता है , माफी मांगने के लिए नहीं....।"

* लेखिका :  कविता सिंह
   गौतम बुद्ध नगर ( नोएडा )