कहानी : सौतेली बेटी...

कहानी : सौतेली बेटी...
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" मनहूस...तुम फिर से मेरे सामने आ गई....!" रामजी प्रसाद अपनी बेटी रुचिका पर भड़ककर बोले थे ।

पिता के मुंह से ऐसा कटु वचन सुनकर रुचिका की आंखों में आंसू लरज उठे थे। वह रोते हुए भागकर अपने कमरे में चली गई और सामने दीवार पर टंगी अपनी मां की तस्वीर के सामने सुबकते हुए कहने लगी - " मां , आप मुझे छोड़कर क्यों चली गईं ? आपके जाने के बाद पापा बहुत बदल गए हैं , वह अब नई मम्मी और उनके दोनों बच्चे से ही प्यार करते हैं, मुझे तो देखना तक नहीं चाहते हैं ! "

 रुचिका काफी समय तक अपनी मां की तस्वीर के सामने बिलखती  रही ,
तभी बाहर से उसकी नई मां की आवाज आई- "अरी, ओ कामचोर लड़की...कहां मर गई तू ? काम के समय पर हमेशा गायब हो जाती हो।"

" अभी आई मां...." बोलते हुए रुचिका भागकर उस कमरे से बाहर आ गई और तेज कदमों से चलती हुई अपनी नई मां के पास जा पहुंची ।

" आ गई महारानी ? अब किचन में जाओ और दोपहर के सारे बर्तन धो लेना , तभी आज का खाना मिलेगा तुम्हें... " उसकी नई मां ने आंखे तरेरते हुए कहा था। 

 बाहर राहुल और शालिनी यानि रुचिका के दोनों सौतेले भाई- बहन खेलने में मस्त थे। रुचिका का भी मासूम  सा मन बाहर खेलने जाने को मचल रहा था। अंदर ही अंदर वह सोच भी रही थी काश मैं भी इन दोनों के साथ खेल पाती । पर नई मां के डर से वह किचन में काम करने पहुंच गई थी और  खिड़की से ही दोनों भाई-बहन को खेलते  देखकर खुश हो रही थी। 

रुचिका भी आखिर अभी 12 साल की ही बच्ची ही तो थी बेचारी , पर हालात ने उसे वक्त से पहले बड़ी होने के लिए मजबूर कर दिया था। पूरे घर का लगभग सारा भार उस मासूम पर आ गया था और घर में इज्जत किसी नौकरानी जितनी भी नहीं थी। 

उसके पिता ऐसे थे जो उसकी मां की मौत का जिम्मेदार उस नन्ही सी बच्ची रुचिका को ही मानते थे। वो बेचारी अपनी मां की मौत के समय सिर्फ 6 महीने की थी। आखिर उसका क्या कसूर था। उसकी मां के जाने के बाद घरवालों ने उसके पिता की दूसरी शादी यह कहकर करवा दी थी की मात्र 6 महीने की बच्ची की देखभाल भला कौन करेगा ?

 तब शायद मजबूरी में ही सही, उसके पिता को दूसरी शादी करनी पड़ी थी।  नई मां ने आते ही रंग दिखाया। उसने उसके पिता के कान भरने शुरू कर दिए थे कि रुचिका मनहूस है, यह लड़की पैदा होते ही अपनी मां को खा गई है। उसके पिता ने भी उसे मनहूस मानकर उसके साथ गलत व्यवहार करना शुरू कर दिया था।धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा । उसकी नई मां के भी दो बच्चे हुए राहुल और शालिनी।
दोनों बच्चों की देखरेख, घर का लगभग सारा काम, सब नन्हीं रुचिका को ही करना पड़ता था ।

  एक दिन रुचिका के मम्मी -पापा और भाई -बहन को कहीं शादी में जाना था, तब वह भी जिद करने लगी कि मैं भी साथ चलूंगी, पर उसके मम्मी-पापा दोनों ने उसे डांट दिया। घर पर भी किसी को रहना जरूरी है , यह कहकर उसे घर पर ही रुकने का आदेश दे दिया गया और वे लोग शादी में चले गये।

  पर शादी में जाते समय ही उनका बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया। इसमें रुचिका के सौतेले भाई की दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी।

  राहुल को कई आंखों के अस्पतालों में  दिखाया गया । पर हरजगह डॉक्टरों ने यह कहकर इलाज करने से मना कर दिया कि राहुल की आंखों का कोई इलाज ही नहीं है। वह कभी भी नहीं देख पायेगा। 

रुचिका भी एक दिन परिवार के साथ एक आंखों के अस्पताल में राहुल की आँखों को दिखाने गई थी। वह सबके पास ही बैठी हुई थी। यहां भी  डॉक्टर द्वारा राहुल की आंखे चेक करने के बाद जब डॉक्टर ने स्पष्ट कह दिया कि राहुल की आंखें कभी ठीक नहीं होंगी, वह जीवन भर अंधा रहेगा। यह सुनकर पूरा परिवार निराश हो गया था।

  तब रुचिका डॉक्टर से बोली " क्या मैं अपनी आंखें अपने भाई को दे सकती हूं ?"

" बेटा इतनी छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी सोच.  " उसकी बातें सुनकर डॉक्टर चौंक पड़ा था, उसकी आंखों में आंसू आ गए थे।वे रुचिका के मम्मी-पापा से बोले - 'आप लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि आपके घर में इतनी प्यारी बच्ची ने जन्म लिया है।'

अब जाकर रुचिका के मम्मी पापा को ये अहसास हुआ था कि जिस रुचिका को अपशगुनी मानकर वे उससे नफरत करते थे , वह सचमुच कितनी महान थी । उन्हें अब खुद पर शर्मिंदगी हो रही थी कि कितना अन्याय उस मासूम के साथ उन दोनों ने किया था। रुचिका से नजरें मिलाने की हिम्मत दोनों में नहीं थी। रुचिका के पापा और नई मम्मी की आंखों में अब आंसू लरजने लगे थे। दोनों ने तेजी से आगे बढ़कर रुचिका को सीने से लगा लिया था और बिलख पड़े थे। 

* लेखिका : कविता सिंह 
 ( गौतम बुद्ध नगर- नोएडा )