श्री जितेन्द्र कुमार दुबे की कलम से एक विशेष रचना - "पन्ना-पन्ना आबाद करो...."

श्री जितेन्द्र कुमार दुबे की कलम से एक विशेष रचना - "पन्ना-पन्ना आबाद करो...."

श्री जितेन्द्र कुमार दुबे की कलम से एक विशेष रचना...  

         पन्ना-पन्ना आबाद करो....

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लेखनी.....!
तूने क्यों व्यापार किया...?
मतिभ्रम लोगों से
क्यों अभिसार किया...?
मर्यादाओं से क्यों मुख मोड़ा,
खुद ही खुद का गौरव तोड़ा,
बाहर कुछ और भीतर कुछ,
ऐसे आडंबर का...!
क्यों संसार रचा......?
खुद की आँखों में पट्टी बाँधे,
खुद ही में कुढ़ने का....!
क्यों व्यवहार किया......?
उत्तर दो...या फिर सुनो लेखनी...
परपीड़ा-परनिंदा का,
शायद तुमको भान नहीं है...
भाग्य-विधाता खुद तुम हो,
इस गरिमा का ध्यान नहीं है....
तो पहचानो तुम निज गौरव को,
क्षणिक मोह की कारा तोड़ो,
तुम से बहती है युग की धारा,
फिर तुम धारा का मुख मोड़ो....
माया की छाया से
खुद को दूर करो.....!
टूट सको तो टूट ही जाओ,
या फिर पन्नों पर स्याही फैलाओ..
पर.….परवश होकर....लेखनी...!
मत कोई अतिचार करो.....
लेखनी...लिखा करो तुम सार
क्यों लिखती हो संसार....?
मत परिहास कराओ खुद का
मत पन्नों को बर्बाद करो....
लिख अमर कथा कोई...लेखनी...
पन्ना-पन्ना आबाद करो....!
लिख अमर कथा कोई...लेखनी..
पन्ना-पन्ना आबाद करो....!

 * रचनाकार.....
      -जितेन्द्र कुमार दुबे
        (अपर पुलिस अधीक्षक)
          जनपद-- कासगंज