कविता : वन वन भटकत

कविता : वन वन भटकत

कविता : वन वन भटकत

  ******************           भगवान राम,लक्ष्मण और सीता वन-वन भटक रहे हैं।राजमहलों की दुलारी सिया थककर विह्वल हो गईं। उनकी व्याकुलता को देखकर राम अधीर होने लगे। यह दृश्य देख लक्ष्मण से न रहा गया । जगदीश्वर की यह मानव लीला देख गगन में जय-जयकार होने लगी....

वन-वन भटकत,कमलनयन पथ,
घट-घट बसत,करत नर करतब ।

चलत-चलत पग परत न थल पर,
दशरथ ललन खलत मन-मन तब ।

लथपथ तन लख, लखन कहत वर,
ठहर-ठहर बरगद तर थम अब ।

पथक सहत समझत समरथ घर,
जय-जय परम, जपत नभ पर सब ।

*कवि :सुरेश मिश्र (मुंबई )