कविता : एक दीया उनके लिये भी जला लेना

कविता : एक दीया उनके लिये भी जला लेना

कविता : एक दीया उनके लिये भी जला लेना

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एक दीया उनके लिये भी जला लेना 
जो दूर वीरान सरहदों पर बसते हैं 
जो मौत के साये में भी हंसते हैं 
सर्द गर्म हवाओं के थपेड़े क्या रोकेगा उन्हें 
वो मौत की छाती पर वीर गाथायें लिखते हैं
इस दिवाली, एक पल उनको भी याद कर लेना 
एक दीया उनके लिये भी जला लेना  ।

सिपाही की क्या होली , क्या दिवाली 
मीलों दूर तक सन्नाटा
 तन्हा लंबी रात काली
बर्फ सी जमती कहीं नब्ज 
कहीं सूरज ने रेत उबाली 
एक हाथ उनके लिये भी बढ़ा देना 
एक दीया उनके लिये भी जला लेना ।

घर में बच्चों को पटाखे दिला दो 
सिपाही की तरफ से हर दोस्त को मिठाई भिजवा दो 
जब मंदिर में हो , सब उसकी तरफ से शीश झुका देना 
एक दीया उनके लिये भी जला लेना ।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह  ( जम्मू  )