नो लाइट्स, नो कैमरा, डायरेक्ट एक्शन.... दिल्ली मेट्रो में युवक के गाल पर बॉलीवुड एक्ट्रेस शिखा मल्होत्रा का क्यों पड़ा झन्नाटेदार थप्पड़ ?
नो लाइट्स , नो कैमरा, डायरेक्ट एक्शन.... दिल्ली मेट्रो में युवक के गाल पर बॉलीवुड एक्ट्रेस शिखा मल्होत्रा का क्यों पड़ा झन्नाटेदार थप्पड़ ?
_ उसने कहा 'तेरी जैसी लड़की... ' तो "आपली मुंबई" की गर्ल बन गई "रणचण्डी" !
_ अपने परिजन का सम्मान बचाने के काम न आए तो जिंदगी किस काम की ? कहती हैं शिखा
* अमित मिश्रा
बॉलीवुड की अभिनेत्रियों को अक्सर अत्यधिक सुंदर किंतु बेहद नाजुक मानने की मान्यता और पुराना चलन रहा है। पर वक्त आने पर नाजुक समझे जाने वाली इन्हीं अभिनेत्रियों में से कुछ दमदार और स्वाभिमानी अभिनेत्रियां अपने या अपने परिवार की सुरक्षा और सम्मान के लिए कैसे रणचंडी बनकर सामने वाले अभद्र या असामाजिक इंसान को नारी शक्ति का जबरदस्त एहसास करा देती हैं इसका जीवंत उदाहरण हिंदी की चर्चित फिल्म कांचली की स्टार अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा हैं , जिन्होंने दिल्ली की मेट्रो में 'थप्पड़ कांड' करके हर तरफ सनसनी फैला दी है। इस थप्पड़ कांड का वीडियो सोश्यल मीडिया पर वायरल हो गया है और अब तक उसे लाखों लोग देख चुके हैं।
शिखा अपनी मम्मी शोभा देवी मल्होत्रा संग पिछले दिनों जब दिल्ली में मेट्रो से यात्रा कर रही थीं , तब उन दोनों से कथित रूप से बदतमीजी करने वाले एक युवक के गालों पर 'आपली मुंबई' की तेजतर्रार गर्ल शिखा के हाथ का पड़ा झन्नाटेदार थप्पड़ वह युवक तो शायद जिंदगी भर भी भूल नहीं पाएगा। यही थप्पड़ शायद उसे और यह थप्पड़ कांड देखने वाले अन्य सभी को भी भविष्य में किसी भी नारी शक्ति के सम्मान और सुरक्षा को भेदने के प्रयास से रोकेगा भी।
इस थप्पड़ कांड की गूंज दिल्ली की मेट्रो से होते हुए मुंबई ही नहीं बल्कि देश भर में एक वायरल वीडियो के चलते फैल गई है। इस बारे में विस्तार से अधिक जानकारी दी अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा ने। उनके अपने शब्दों में सारी घटना इस प्रकार है....
* बतौर शिखा मल्होत्रा .....
" मैं अपने म्यूजिकल बैंड "हसीना द बैंड" के एक शो के सिलसिले में मुम्बई से दिल्ली गई हुई थी। अक्सर मुम्बई में कई सेलेब्रिटी ट्रैफिक से बचने के लिए मेट्रो या फेरी का इस्तेमाल कर लेते हैं वैसे ही मैंने भी दिल्ली में होनेवाले अपने शो तक पहुंचने के लिए मेट्रो से जाना चुना। पब्लिक में मैं पहचानी ना जा सकूं इसलिए अपने मुंह पर मास्क और आंखों पर गॉगल चढ़ाकर निकली थी। मेरे साथ मेरी मम्मी शोभा देवी भी थीं। हम दोनों दिल्ली के प्रताप नगर मेट्रो स्टेशन से होटल लीला पैलेस जाने के लिए रवाना हुए थे। रास्ते में "वेलकम मेट्रो स्टेशन" से हमने दूसरी मेट्रो पकड़ी। तब तक तो सब कुछ सही था, यात्रा भी सुखद थी। मेट्रो में बैठने की जगह काफी थी, लेकिन मेरे साथ काफी लगेज भी था तो मैंने अपनी मम्मी को सीट पर बैठा दिया और खुद दरवाज़े के पास अपने सामान के साथ खड़ी हो गई। तभी किसी स्टेशन से तीन लोग मेट्रो के भीतर प्रविष्ट हुए और मेरी मम्मी के पास वाली खाली सीट्स पर आकर बैठ गए, हालांकि वहां दो लोगों के बैठने की जगह ही थी, पर ना जाने किस जिद के कारण में वो तीनों लोग वहीं एक साथ बैठना चाह रहे थे। दो सीटों पर वे तीन युवक जबरदस्ती एडजस्ट हो भी गए। लेकिन मेरी मम्मी शोभाजी को इस तरह उनका जबरन बैठना असहज कर रहा था क्योंकि मेरी मम्मी एक एक्सिडेंटल पैर के साथ यात्रा कर रहीं थीं, इसलिए उन्हें उन युवकों के कारण तकलीफ हो रही थी। जब उन्हें बर्दास्त नहीं हुआ तब उन्होंने उस लाल शर्ट वाले युवक से कहा कि 'बेटा आप सामने खाली पड़ी सीट पर जाकर बैठ जाओ।'
एक अघोषित परंपरा भी है कि ऐसे समय में यात्रीगण जब बुजुर्ग, प्रेग्नेंट या तकलीफ में पड़ी किसी महिला को देखते हैं तो अपनी सीट भी छोड़कर उसे आफर कर देते हैं । पर उस लाल शर्ट वाले युवक ने बड़ी बेपरवाही और बदतमीजी से कहा "अरे हम तीनों साथ आये हैं तो साथ ही बैठेंगे न..." !!
इस तरह का तल्ख जवाब सुनकर मम्मी जी तो चुप रह गईं, पर दरवाज़े के पास खड़ी होकर मैं ये देख रही थी । पहले तो हमने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा था, पर उस लाल शर्ट वाले युवक के मन मे अभी भी खुराफात चल रही थी। उसने मम्मी से पूछा कि "आंटी अकेली ही आई हो क्या आप... ?"
मेरी मम्मी हो पहले से ही उसके दुर्व्यवहार के कारण अपमानित होकर चुप थीं, वो ऐसे सवाल से सकपका गई और उन्होंने मेरी ओर देखा ।
अब मैं समझ गई थी कि मामला संगीन होता जा रहा है और फिर अपने सामानों को साथ लिए मैं मम्मी के पास चली आई और नॉर्मल अंदाज में ही उस युवक से मैंने पूछा कि "क्या बात है , ऐसा क्यों पूछ रहे हो, अकेले नहीं आई हैं वो ..."
तब उस युवक ने अकड़ कर कहा "तू क्यों बोल रही है ? तू कौन है ?"
तब मैंने भी गरजकर कहा कि " तू जिससे बदतमीजी से बात कर रहा है वो मेरी माँ है, बेटी हूँ मैं उनकी।"
तब लाल शर्ट वाले युवक ने हिकारत भरी नजर से मुझे देखते हुए कह दिया "तेरी जैसी लड़कियां..."
बस यह असामजिक शब्द सुनते ही चरित्र हनन सा करने वाली उसकी बात को मैंने पूरा नहीं होने दिया और तुरंत उसके गाल पर एक तमाचा रसीद कर दिया, फिर चिल्लाकर उससे पूछा " तेरी जैसी का मतलब क्या ? तेरी मां जैसी... तेरी बहन जैसी.. समझा ? "
इसके बाद कई यात्री जिनमें से एक ने स्वयं को वकील भी बताया था तथा अच्छे घरों के कुछ अन्य शरीफ लोग भी मेरे बचाव में आकर पास खड़े हो गए। यहां तक कि उस युवक के साथ के बाकी लोग भी उसी युवक को समझाने और धृष्टता करने से रोकने में जुट गए थे।
शिखा ने आगे कहा कि " उस लाल शर्ट वाले युवक की तरह देश के कई युवाओं की परवरिश में जरूर ऐसी कमी रह गई होगी कि जब उन्होंने कभी अपनी माँ, बहन अथवा बीवी का शायद सम्मान नहीं किया होगा तो वो किसी अंजान महिला का कैसे सम्मान कर सकेंगे । उसके आक्षेप मेरे जैसे जीन्स टॉप पहनने, चश्मा लगाने, मॉर्डन रहने को लेकर थे, बिल्कुल किसी बॉडी शमिंग वाली टिप्पणियां रहीं, जिससे ज़ाहिर होता है स्त्री को बस पुरुषों की सोच के मुताबिक ही कपड़े पहनना चाहिए । पूरी तरह से ऐसी घटिया मानसिकता खराब अपब्रिंगिंग का नतीजा है।"
शिखा आगे कहती हैं "मैं उन सभी लोगों को खास ये संदेश देना चाहूंगी कि जीवन मे हमेशा मुखर रहें, डरे नहीं, गलत का विरोध करें , अपने माता-पिता जिनकी वजह से आप एक सुरक्षित और सुंदर जीवन जी रहे हैं उन्हें कभी कोई आंख उठाकर भी देखे तो विरोध के लिए एक पल भी ना रुकें। जब तक आप अपने हक के लिए खड़े हैं तो दुनिया भी आपके साथ हो लेगी।। आप ही ने इनशेटिव नहीं लिया तो कोई क्या ही मदद कर पायेगा आपकी। मैंने जो उस दिन किया, वही मैं आगे भी हमेशा करूंगी। भले कोई मुझे दो थप्पड़ मार दे , लेकिन में एक थप्पड़ तो उसे मारकर ही रहूंगी, गलत नहीं सहूंगी।"
शिखा ने अंत में कहा कि "मैं एक फाइटर हूँ जब कोविड के समय में मौत से बिना डरे इतने महीनों ICU में कितने ही अनजान लोगों का साथ निभाकर मुफ्त सेवा सकती हूँ तो फिर ये तो मेरी माँ थी, मेरा रिएक्शन तो बनता ही था । कभी गलत मत सहिए क्योंकि गलत सहने वाला गलत करनेवाले के मुकाबले ज़्यादा बड़ा दोषी है।"