डॉ.मंजू लोढ़ा की कलम से विशेष रचना "मेरी मातृभूमि, मेरा राजस्थान"

डॉ.मंजू लोढ़ा की कलम से विशेष रचना "मेरी मातृभूमि, मेरा राजस्थान"
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मेरी मातृभूमि, मेरा राजस्थान,
शौर्य, भक्ति, बलिदान की पहचान।
वीरों की गाथाएँ गूंजे हवाओं में,
स्वामिभक्ति के दीप जले दिशाओं में।
महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा अमर,
हल्दीघाटी रणभूमि, चेतक का जज्बा प्रखर।
राणा सांगा की तलवार की चमक,
अस्सी घाव लेकर भी रण में दमक।
बलिदान की गाथाएँ यहां अनंत,
मेरा राजस्थान, शौर्य का वंदन।
पृथ्वीराज की शब्दभेदी बाण,
गोरी के घमंड का हुआ अवसान।
चंदवरदाई के शब्दों की ज्वाला,
रण में कटकर भी जिंदा रहा मतवाला।
जयमाल राठौड़, कल्ला रायमलोत,
अमर सिंह, जैतसिंह का शौर्य अद्भुत।
रानी पद्मिनी की जौहर की ज्वाला,
सिंहिनी-सी सखियों संग वीर बलिदान आला।
हाड़ा रानी का त्याग अतुल,
कर्णावती की राखी की महिमा अपरंपार।
भामाशाह का स्वर्ण दान,
मेरा राजस्थान, गौरव की पहचान।
करमा बाई की भक्ति अलौकिक,
मीरा की सुर-सरिता अनमोल।
पन्ना धाय की स्वामिभक्ति,
रानी बाघेली की शूरता अतुल।
इस भूमि का कण-कण गाता,
शौर्य, भक्ति, कला का नाता।
महलों, दुर्गों, हवेलियों की शान,
धुमर-कलबेलिया का मनमोहक गान।
हस्तकला, कविता का भंडार,
कला और संस्कृति का है अपार।
मरुस्थल भी हरा-भरा लगे,
जब प्रेम, वीरता साथ जगे।
गुलाबी नगरी की रौनक न्यारी,
तीज-त्योहारों की लहरें प्यारी।
परिधान राजसी, दिल है ठाठसी,
खान-पान में रईसी, शौर्य इसकी पहचान।
बलिदान एवं वीरता का गान,
मेरा राजस्थान, मेरा अभिमान।
जय जय राजस्थान, जय जय मारवाड़!
* कवयित्री डॉ. मंजू लोढ़ा - ( मुंबई )
( कवयित्री प्रसिद्ध समाजसेविका और वरिष्ठ साहित्यकार हैं)