शब्द जो बन गए 'कविता'

शब्द जो बन गए 'कविता'

   शब्द जो बन गए 'कविता'

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जब मन होता है बेचैन,
और अशांति घेर लेती है,
तब मां की सीख गूंज उठती,
हर पीड़ा क्षण में ढलती है।

"किसी की बात को मन से न लगाना,
जो बुरा लगे, बहने दो,
अपनी शक्ति को संजोकर,
सपनों की राह गढ़ने दो।"

मां के शब्दों में जो जादू,
वो कलम पकड़ साकार हुआ,
हर भाव पन्नों पर बिखर गया,
हर अक्षर  से मुझे प्यार हुआ।

कविता कभी संगिनी बन जाती,
कभी मीठी नदी सी  रंग रंग बहती है,
कभी मां के आंचल सी लिपटती,
तो कभी दिल को सहलाती है।

शब्द कभी मरहम बन जाते,
कभी चुभते तीर समान,
कभी लोरी बनकर सहलाते,
कभी देते दिल को मान।

शब्दों में होता है जीवन,
कभी रुलाते, कभी हंसाते,
जहां वाणी में प्रेम समाए,
वहीं ईश्वर भी मुस्काते।

तो बोलो मीठे बोल सदा,
किसी मन को न ठेस लगे,
हर शब्द बने दुआ किसी की,
और खुशियों के दीप जले।

*कवयित्री : डॉ. मंजू लोढ़ा                            (मुंबई )