हिंदी हैं हम .... विश्व हिन्दी अकादमी के त्रिदिवसीय महोत्सव में हिंदी के भविष्य पर विद्वानों ने की चर्चा

हिंदी हैं हम .... विश्व हिन्दी अकादमी के त्रिदिवसीय महोत्सव में हिंदी के भविष्य पर विद्वानों ने की चर्चा

हिंदी हैं हम ....
विश्व हिन्दी अकादमी के त्रिदिवसीय महोत्सव में हिंदी के भविष्य पर विद्वानों ने की चर्चा


* संवाददाता
          भारतीय सभ्यता संस्कृति को समझने के लिए हिंदी जानना जरुरी है। रूस में हिंदी सीखने वाले रशियन बड़ी शिद्दत के साथ यह भाषा सिखते हैं। यह कहना है मास्को में हिंदी के प्रचार प्रसार में जुटीं फैशन डिजायनर स्वेता सिंह। वे विश्व हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित "मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हिंदी महोत्सव' को ऑनलाईन संबोधित कर रहीं थीं। स्वेता सिंह ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि मुझे अवश्य लगता है कि दुनियाभर में हिंदी का भविष्य अत्यधिक उज्जवल है। 
          अंधेरी पश्चिम के मुक्ति सभागार में आयोजित हिंदी महोत्सव के पहले दिन "हिंदी के विकास में फिल्म, रेडियो व इंटरनेट की भूमिका' विषय पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए विविध भारती के उदघोषक रहे व वरिष्ठ पत्रकार किशन शर्मा ने कहा कि एक ऐसा भी दौर था जब हिंदी फिल्मों के गीतों को रेडियो ने दूर देश तक पहुंचाया।

       मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के अध्यक्ष आदित्य दुबे ने कहा कि पेरिस यात्रा के दौरान जब मैंने स्थानीय टैक्सी ड्राईवर से पूछा कि आप इंडिया के बारे में क्या जानते हो, तो उसने जवाब दिया कि "मैं इंडिया में सिर्फ महात्मा गांधी और दिलीप कुमार को जानता हूं।' श्री दुबे ने आगे कहा कि इससे पता चलता है कि हिंदी को दुनियाभर में फैलाने में हिंदी फिल्मों की क्या भूमिका रही है।

    मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के महासचिव विजय सिंह "कौशिक' ने कहा कि 90 के दशक में इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री 80 फीसदी अंग्रेजी और सिर्फ 20 प्रतिशत भारतीय भाषाओं में थी। पर अब अंग्रेजी सामग्री घट कर 57 प्रतिशत हो गई है जबकि हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में 43 प्रतिशत सामग्री उपलब्ध है। 
            कार्यक्रम के आयोजक केशव राय ने कहा कि सभागार में युवाओं की भारी संख्या को देखकर अहसास हो रहा है कि वर्तमान के साथ हिंदी का भविष्य भी उज्जवल है।

    इस मौके पर लेखिका मंजू लोढ़ा की किताब "अनकही कहानिंया' का विमोचन भी किया गया।

    इस दौरान सुप्रसिद्ध लेखक कमलेश पांडेय और राजेन्द्र राठौर ने विज्ञापन जगत में हिंदी का बढ़ता दबदबा पर,  मोहम्मद वजीहुद्दीन, सुरेश शर्मा और सतीश सिंह ने मीडिया : विश्वसनीयता का संकट एवम् वॉइस कल्चर पर  हरीश भिमानी तथा किशन शर्मा ने यादगार संस्मरण सुनाये।

     हिंदी महोत्सव के दौरान निर्देशक देव फौजदार का नाटक "अंदाज ए आज़ाद' और निर्देशक अरविंद गौड़ के नाटक प्रेमचन्द को खूब पसंद किया गया।

    इस मौके पर सुप्रसिद्ध पत्रकार अजित रॉय, फिल्मकार राजेश राठी, अमित खान और कृतिका राय आदि मौजूद रहे।