करगिल विजय दिवस पर विशेष कविता : वो आज भी ज़िन्दा है

करगिल विजय दिवस पर विशेष कविता : वो आज भी ज़िन्दा है

करगिल विजय दिवस पर विशेष कविता : वो आज भी ज़िन्दा है...
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करगिल का कण-कण कहता है 
देश का जन-जन कहता है 
युद्ध का क्षण-क्षण कहता है 
वो आज भी ज़िन्दा है ।

हमारे दिलों में , हमारी रूहों में 
 दहाड़ें गूंजती हैं करगिल के पहाड़ों में 
जानें कांपती हैं दुश्मनों की अब तक घरों में 
 अंधेरी रातों में सिपाही का जमाल आज भी ज़िन्दा है 
वो आज भी ज़िन्दा है।

बंदूकों की गोलियां, तोपों की गड़गड़ाहट ने कब-कहां रोका था 
रिसते ज़ख्मों ने ,दर्द की कराहों ने कहां टोंका था 
वो जब उठा था तो बर्फ भी जम गयी थी 
देख जोश उसके मौत भी थम गयी थी
जलवों में वो आज भी ज़िन्दा है 
करगिल का कण-कण कहता है 
देश का जन-जन कहता है 
युद्ध का क्षण-क्षण कहता है 
वो आज भी ज़िन्दा है
वो आज भी ज़िन्दा है।

खून जम रहा था ,वक़्त थम रहा था 
मुल्क की मुहब्बत में जोश कहां  कम था 
वो कर गुज़रे जो नामुमकिन था 
सरहदों की हिफाजत का हुनर तेरा
आज भी ज़िन्दा है 
वो आज भी ज़िन्दा है।

करगिल कुरुक्षेत्र नहीं पर 
मुहब्बत मुल्क की वही है 
मरने मारने की कुवत वही है 
आज भी खड़ा है सिपाही सरहद पर 
 मुल्क के सिपाही का हर करगिल वहीं है 
भारत माता की जय की गूंज वहां आज भी ज़िन्दा है 
वो आज भी ज़िन्दा हैं
वो आज भी ज़िन्दा हैं

* कवि : राजेश कुमार लंगेह  (बीएसएफ)