बाल-कथा : निश्चिंत जीवन....

बाल-कथा : निश्चिंत जीवन....
लेखिका - कविता सिंह

बाल-कथा : निश्चिंत जीवन....

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बहुत समय पहले की बात है। एक आइसलैंड के उत्तरी छोर पर एक  किसान रहता था। उसे अपने  खेत में काम करनेवालों की  हमेशा बड़ी ज़रुरत रहती थी। लेकिन ऐसी  खतरनाक जगह, जहाँ आए दिन  आंधी–तूफ़ान आते रहते हों,  वहां कोई काम करने को तैयार ही नहीं होता था।

उस किसान ने एक दिन शहर के अखबार में इश्तिहार दिया कि उसे खेत में काम करनेवाले एक मजदूर की ज़रुरत है। किसान से मिलने कई लोग आये लेकिन जो भी उस जगह के बारे में सुनता, वो काम करने से मना कर देता था।

अंततः एक सामान्य कद का पतला-दुबला अधेड़ व्यक्ति  किसान के पास पहुंचा।

किसान ने उससे पूछा, “ क्या तुम इन परिस्थितयों में वहां काम कर सकते हो?”

“जी हां, बस जब हवा चलती है  तब मैं सोता हूँ” व्यक्ति ने उत्तर दिया।

किसान को उसका उत्तर थोड़ा अटपटा लगा लेकिन चूँकि उसे  कोई और काम करनेवाला नहीं  मिल रहा था इसलिए उसने  व्यक्ति को काम पर रख लिया।

 मजदूर मेहनती निकला, वह  सुबह से शाम तक खेतों में जी तोड़ मेहनत करता था , किसान भी उसके काम से काफी संतुष्ट था।

कुछ ही दिन बीते थे कि एक रात अचानक ही जोर-जोर से हवा बहने लगी, किसान अपने अनुभव से समझ गया कि अब तूफ़ान आनेवाला है। वह तेजी से उठा, हाथ में लालटेन ली और मजदूर के झोपड़े की तरफ दौड़ा।
 
“जल्दी उठो, देखते नहीं तूफ़ान आनेवाला है, इससे पहले कि सब-कुछ तबाह हो जाए कटी फसलों को बाँधकर ढंक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से बाँध दो ”, किसान ने लगभग चीखते हुए फ़रमान सुनाया।

अब लेटा पड़ा मजदूर बड़े आराम से पलटा और बोला- “ नहीं जनाब, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब भी तेज हवा चलती है तो मैं सोता हूँ!”

यह सुनकर किसान का गुस्सा सातवें  आसमान पर पहुँच गया, उसके मन में आया कि उस मजदूर को गोली मार दे। परंतु अभी वो आनेवाले तूफ़ान से अपनी चीजों को बचाने के लिए  आगे भागा।

किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुलीं  रह गयीं। उसने देखा कि फसल की गांठें अच्छे से बंधी हुई थीं और तिरपाल से ढंकी भी थीं। उसके गाय-बैल सुरक्षित बंधे हुए थे और मुर्गियां भी अपने दरबों में थीं। बाड़े का दरवाज़ा भी मजबूती से बंधा हुआ था। सारी चीजें बिलकुल व्यवस्थित थीं।नुकसान होने की कोई संभावना नहीं बची थी। 

किसान अब मजदूर की ये बात कि “जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ ”…...समझ चुका था और अब वो भी चैन से सो सकता था।

 *शिक्षा - समय से पूर्व अगर हम अपना कार्य कर लेते हैं तो हमें बाद में पछताना नहीं पड़ता और हम जीवन संघर्ष में निश्चिंत रह सकते हैं।जब हम फल की चिंता किये बगैर अपने कर्म सही रीति से, समय से पूर्व करके उसे परमात्मा को समर्पित कर देते हैं और हम निश्चिन्त हो जाते हैं तब सफलता हमारी दासी बन जाती है।


लेखिका : कविता सिंह
 ( नोएडा - गौतम बुद्ध नगर )