900 ग्राम वजन और दिल की बीमारी से पीड़ित नवजात शिशु को कोकिलाबेन अस्पताल में मिला नव-जीवन !
900 ग्राम वजन और दिल की बीमारी से पीड़ित नवजात शिशु को कोकिलाबेन अस्पताल में मिला नव-जीवन !
- मेडिकल साइंस और मां के प्रेम की जीत
* विशेष संवाददाता
एक मां ने सड़क हादसे में अपने 12 साल के बेटे को खो दिया। कई वर्षों बाद उसके दु:ख के बादल छंटे और जीवन में एक खुशी की किरण तब आई जब वह 50 साल की उम्र में दोबारा गर्भवती हुई। बेबी गणेश का जन्म तय समय से कुछ पहले हुआ, जन्म के समय उसका वजन सिर्फ 900 ग्राम था और उसे जन्मजात दिल की बीमारी थी, जिससे परिवार की खुशियों पर संकट के बादल घिर आए। जन्म के महज 20 घंटे बाद समय पर उन्नत हृदय रोग देखभाल (कार्डियक केयर) मिलने और कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के विशेषज्ञ डाक्टरों की टीम द्वारा 67 दिन के बच्चे की जटिल ओपन हार्ट सर्जरी सफलतापूर्वक करने से इस बच्चे को दूसरा जीवन मिला। मां को पहली प्रेगनेंसी की पहली तिमाही (ट्राइमेस्टर) में ही भ्रूण के हृदय संबंधी विकार होने की आशंका पर कोकिलाबेन अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया था।
भ्रूण की इकोकार्डियोग्राफी से पता चला कि विकासशील भ्रूण में ट्रांसपोज़िशन ऑफ़ द ग्रेट आर्टरीज़ (टीजीए) है। यह एक प्रकार का सियानोटिक हृदय विकार है जिसमें हृदय से फेफड़ों और शरीर तक रक्त ले जाने वाली दो मुख्य धमनियां, मुख्य फेफड़े संबंधी (पल्मोनरी) धमनी और महाधमनी(अरोटा), सही ढंग से जुड़ी नहीं होती है जिससे स्थान बदल जाता है।
डॉ सुरेश राव, चिल्ड्रन हार्ट सेंटर के निदेशक-सलाहकार व बाल रोग एवं जन्मजात हृदय सर्जन, कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल ने बताया कि , ‘’ जन्म से पहले पता नहीं चलने पर जन्मजात हृदय रोगों के परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। हालांकि, स्थिति की प्रसवपूर्व पहचान के साथ टीजीए के परिणाम में सुधार होता है। इस मामले में, दंपति ने पहले ही अपने एक बच्चे को हादसे में खो दिया था और यह देखते हुए कि वे 50 वर्ष से अधिक उम्र के एक बुजुर्ग दंपति थे, यह बच्चा उनके लिए बच्चा पैदा करने का एकमात्र मौका था। गर्भावस्था के दौरान मां और भ्रूण की स्थिति पर बारीकी से नजर रखी गई। 29वें हफ्ते में मां को हुई कुछ जटिलताओं के कारण हमें बच्चे का जन्म, समय से पहले ही कराना पड़ा। चूंकि बच्चे के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे, हमें उसे तुरंत वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। प्री टर्म बच्चे का वजन जन्म के वक्त महज 900 ग्राम था। डॉक्टरों ने सुधारात्मक सर्जरी करने की योजना बनाई और बच्चे का कुछ वजन बढ़ने तक इंतजार किया। हालांकि, जन्म के 20 घंटे बाद ही नवजात की स्थिति तेजी से बिगड़ने लगी, उसका ऑक्सीजन लेवल तेजी से घटने लगा। हालात को देखते हुए तुरंत बलून सेप्टोस्टमी नामक इमरजेंसी प्रक्रिया शुरू की गई। यह एक न्यूनतम इनवेसिव हृदय विकार प्रक्रिया है जिसके जरिये अस्थायी रूप से विकास को संभालने की कोशिश की जाती है।
डॉ. सुरेश राव ने आगे कहा कि " दो महीने का होते-होते शिशु की हालत बेहद बिगड़ने लगी और उसकी तत्काल सर्जरी करने की जरूरत थी। उस वक्त बच्चे का वजन महज 1.5 किलो होने के बावजूद हमें उसकी जान बचाने के लिए उसका ऑपरेशन करना पड़ा। हमने शिशु की धमनियों को ठीक जगह पर स्थित करने के लिए एक बेहद जटिल आर्टिरियल स्विच सर्जरी को अंजाम दिया, कम वजन होने के कारण यह बेहद मुश्किल और जटिल प्रक्रिया थी। शिशु का कम वजन और उम्र एक बड़ी चुनौती थी और समय से पहले हुए संक्रमण ने इसे और जटिल बना दिया था। आमतौर पर इस तरह की सर्जरी तब की जाती हैं जब बच्चे का वजन कम से कम दो किलो हो। कोकिलाबेन अस्पताल के एनआईसीयू में यह शिशु 86 दिनों तक डॉक्टरों की निगरानी में रहा और फिर सामान्य होने के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हमें बेहद खुशी है कि सभी चुनौतियों के बाद भी सर्जरी सफल रही और हम शिशु को जिंदगी का दूसरा मौका देने में कामयाब हुए। ऐसा एक छत के नीचे विभिन्न विशेषज्ञ डॉक्टरों के उपलब्ध रहने और हर समय उनके सहयोग व इमरजेंसी देखभाल के कारण ही संभव हो सका।
शिशु की मां ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि " कोकिलाबेन अस्पताल में डॉक्टरों की टीम ने हमारे बच्चे को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह हमारे लिए परीक्षा की घड़ी थी और हम कोकिलाबेन अस्पताल के डॉक्टरों और पूरी टीम के द्वारा मिली उनकी निरंतर देखभाल और समर्थन के लिए आभारी हैं। बीमारी की पहचान से लेकर जटिलता के उपचार होने तक उन लोगों ने हर पल हमारे बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित की। वे 24 घंटे हमारे बच्चे की देखभाल के लिए उपलब्ध रहे और इसी कारण मुझे और मेरे पति को माता-पिता बनने का यह सुख दोबारा हासिल हुआ।"