&TV के कलाकारों ने मकर संक्रांति पर बताया पहली बार पतंग उड़ाने का अपना अनुभव !

&TV के कलाकारों ने मकर संक्रांति पर बताया पहली बार पतंग उड़ाने का अपना अनुभव !

&TV के कलाकारों ने मकर संक्रांति पर बताया पहली बार पतंग उड़ाने का अपना अनुभव !

* बॉलीवुड रिपोर्टर

        मकर संक्रांति को पतंगों का त्यौहार भी कहा जाता है, जिसे पूरे भारत में बड़े ही आनंद से मनाया जाता है। त्यौहार के उत्साह में लोग पंतग उड़ाते हैं और यह बसंत ऋतु की शुरूआत का प्रतीक होता है। इस शुभ अवसर पर एण्डटीवी के कलाकार पहली बार पतंग उड़ाने के अपने यादगार अनुभव बता रहे हैं। यह कलाकार हैं व्योम ठक्कर ( अटल) , गीतांजलि मिश्रा (राजेश सिंह-हप्पू की उलटन पलटन) और शुभांगी अत्रे (अंगूरी भाबी -भाबीजी घर पर हैं)।

   एण्डटीवी के शो अटल में नन्हें अटल की भूमिका निभा रहे व्योम ठक्कर ने कहा कि गुजराती होने के नाते हम मकर संक्रांति को उत्तरायण कहते हैं और इस त्यौहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस मौके पर हमारा पूरा परिवार घर पर इकट्ठा हो जाता है। हम त्यौहार की शुरूआत प्रार्थना से करते हैं और फिर पतंग उड़ाने की परंपरा के लिये छत पर पहुँच जाते हैं। यह हमारी पसंदीदा परंपरा बन चुकी है। मुझे पतंग उड़ाने का अपना पहला अनुभव खूब याद आता है। शुरूआत में मैं आसमान में कई पतंगें उड़ती देखकर थोड़ा नर्वस हो गया था, मुझे मांझा पकड़ना भी नहीं आता था। तब मेरे पिताजी हीरो बनकर आए और उन्होंने सावधानी से मांझा बढ़ाने की कला मुझे सिखाई। उन्होंने सिखाया कि एक भाग को एक हाथ में पकड़ना चाहिये और दूसरा हाथ थोड़ा नीचे रखना चाहियेए ताकि पतंग को हवा में जाने के बाद ताना जा सके। शुरूआती कोशिशों में कई बार असफल होने के बावजूद मैंने हार नहीं मानी। सफलता हासिल करने के लिए मैं बार-बार कोशिश करता रहा। धीरे-धीरे लेकिन मेरी पतंग अच्छी तरह उड़ने लगी। मेरे साथ मेरे पिताजी ने भी बहुत ही अच्छे से मांझा पकड़ा था। अपनी पतंग को आसमान में ऊँचा उड़ते देखने की खुशी असीमित थी। बीते सालों में मैंने पतंग उड़ाने के अपने हुनर को इतना अच्छा बना लिया है कि मैं आत्मविश्वास से खुद को उस्ताद कह सकता हूँ। अब त्यौहार की इस पारंपरिक और रोमांचक गतिविधि में मुझसे बेहतर करना किसी के लिये भी एक बड़ी चुनौती होगी।

   हप्पू की उलटन पलटन में राजेश सिंह की भूमिका निभा रहीं गीतांजलि मिश्रा ने बताया कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ मकर संक्रांति का मौसम देखकर पतंग नहीं उड़ाई जाती है बल्कि यह पूरे साल चलता है। पूरे साल पतंगों की प्यारी रंगत से आसमान निखरा हुआ रहता है। जब मैं छोटी थी तब छत पर जाकर इस रोमांचक खेल के लिये घंटों बिता दिया करती थी। मकर संक्रांति के दो हफ्ते पहले से रोमांच बनने लगता है और मैं अपने दोस्तों के साथ पतंगें खरीदने निकल जाती थी। खूब सारी पतंगें खरीदकर हम छत पर पहुँच जाते थे और छतों को पतंगों की जंग का मैदान बना देते थे। दूसरों की पतंग काटने और फिर उसे लूटने के लिये एक छत से दूसरी छत पर भागने का रोमांच ही हमारे उन दिनों का सार था। खुशी से भरी इन बातों में एक घटना अभी तक मुझे याद है। एक पतंग का पीछा करते हुए मैं गिर गई थी और मुझे हल्की चोटें लगी थीं। इस घटना को अपनी माँ से छुपाने के लिये मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया। हालांकि माँ सब.कुछ समझती है और मेरी माँ को भी जल्दी ही सच का पता चल गया। इसके बाद मेरा परिवार थोड़ा परेशान रहा और यह चिंता हमारे चहेते खेल से जुड़े जोखिमों के कारण थी। मेरे होमटाउन में पतंग उड़ाने के उन रोमांचक दिनों के अवशेष अब भी स्मारक की तरह बने हुए हैं। जैसे कि पतंगों का एक कलेक्शन जो पुरानी यादें ताजा करता है और बचपन की उस चहेती गतिविधि को संजोता है। हंसी-मजाक, दोस्ती और कभी-कभी हुई शरारतें उन पतंगों में बसती हैं। इस तरह से वह कोई मौसमी गतिविधि नहीं थी बल्कि आसमान से पूरे साल प्यार करते रहने का एक जरिया था।

     भाबीजी घर पर हैं की अंगूरी भाबी यानि शुभांगी अत्रे ने बतायाए पतंग उड़ाने को लेकर मेरा अनुभव यादगार है। मुझे आसमान में पतंग उड़ाने में विशेष रोमांच मिला था। शुरूआत में काफी उत्साह और उत्सुकता थी। आसमान में उड़ रहीं लुभावनी पतंगों ने मेरा ध्यान खींचा और मैं अपनी पतंग उड़ाने के लिये उत्सुक हो गई। ऊपर उड़ती अनगिनत पतंगों को देखकर मैं भी अपनी पतंग उड़ाने के लिये इंतजार नहीं कर सकती थी। आखिरकार वह पल आया जब मैंने आसमान में अपनी पतंग पहुँचाई और हर बीतते पल के साथ वह ज्यादा ऊँचाई पर पहुँचती गई। अपनी पतंग को हवा चीरते देखने का रोमांच मैं बयां नहीं कर सकती थी। मैं बेहद खुश थी। उस दिन की एक खुशनुमा याद तब की है जब पतंग उड़ाने में माहिर होने को लेकर मेरी बहनों के साथ मेरी प्यारी.सी लड़ाई हो गई थी। उन्होंने जलन जैसा भाव दिखाया क्योंकि मैं अपनी पहली कोशिश में ही सफल हो गई थी और उन्हें हंसते-हंसते अपनी कोशिशों को दोहराना पड़ा। पूरा अनुभव बेहतरीन था और मकर संक्रांति के त्यौहार का माहौल अब भी मेरे दिल को खुशी से भर देता है। मैं सभी को मकर संक्रांति की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं देती हूँ!

   अपने चहेते कलाकारों को देखिये ‘अटल’ में रात 8:00 बजे, ‘हप्पू की उलटन पलटन’ में रात 10:00 बजे और ‘भाबीजी घर पर हैं’ में रात 10:30 बजे, हर सोमवार से शुक्रवार सिर्फ एण्डटीवी पर!