कविता : "नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे इस नकली संसार में...."

कविता : "नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे इस नकली संसार में...."

योग दिवस पर वरिष्ठ कवयित्री रजनी श्री बेदी की कलम से विशेष रचना ....

     कविता : "नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे   इस नकली संसार में...."
    ********************

हर मशीन का कलपुर्जा
मिल जाए तुम्हें बाजार में,
नही मिलते हैं तन के पुर्जे
इस नकली संसार में।

नकारात्मक सोचे इंसा तो
 सिर भारी हो जाएगा,
उपकरणों की किरणों से              चश्माधारी हो जाएगा।

जीभ के स्वादों के चक्कर में
न डालो पेनक्रियाज मझधार में,
नही मिलते हैं तन के पुर्जे
 इस नकली संसार में।

तला हुआ जब खाते हैं..
लीवर की शामत आती है,
 बड़ी आंत भी मांसाहारी
भोजन से डर जाती है।

छोड़ तैलीय भोजन को कर लें
कमी हृदय संहार में,
नही मिलते हैं तन के पुर्जे
इस नकली संसार में।

बासी खाना खा कर हमने
 छोटी आँत पर वार किया,
खा कर तेज़ नमक को हमने
 रक्त प्रवाह बेहाल किया।

पीकर ज्यादा पानी रख लें
किडनी को हर हाल में,
नही मिलते हैं तन के पुर्जे
इस नकली संसार में।

फूंक फूंक सिगरेट को अपने              फेफड़े तुम जलाओ न,
रात रात भर जाग जाग के 
पाचन क्रिया बिगाड़ो न।

अब भी वक़्त बचा है बन्दे
रह लो खुश परिवार में,
नही  मिलते हैं तन के पुर्ज़े
इस नकली संसार में।

सारे सुख है बाद के मानो 
सुख पहला निरोगी काया,
जब पीड़ित ही तन हो जाता
भाती न दौलत माया।

 योग दिवस को रोज़ मनाकर                सुखी रहो  संसार में,
नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे 
इस नकली संसार में।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
          जयपुर ( राजस्थान )