व्यंग्य कविता : मुझे अब पता चला !
व्यंग्य कविता : मुझे अब पता चला! ****************************
दुनिया है अब भी गोल, मुझे अब पता चला,
हर कदम पर है झोल, मुझे अब पता चला।
बाजार में दूकान की हर झूठ बिक गई,
सच का नहीं है मोल, मुझे अब पता चला।
क़ातिल जो था वह सरकारी गवाह बन गया,
मुंसिफ का इसमें रोल, मुझे अब पता चला।
जो राह दिखाते थे इस समाज को कभी,
उनमें है बहुत पोल, मुझे अब पता चला।
रहजन हमारे देश के आरोप लगाएं,
सब कुछ है गोलमोल मुझे अब पता चला।
जिसको अनंतनाग समझता रहा अब तक,
वह तो है आसनसोल, मुझे अब पता चला।
अनमोल हैं 'सुरेश', यही जानते थे सब,
ये बन गए हैं ढोल, मुझे अब पता चला।
* सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक) - मुम्बई