कविता : यह पचास फौज के अगले पचास मौज के !
कविता : यह पचास फौज के अगले पचास मौज के !
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पचास का हो लिया
जो करना था कर लिया
अब तो बस सोच लिया
मोह माया सब छोड़ दिया
यह पचास फौज के
अगले पचास मौज के ।
पेंशन का हक पा लिया
फौज ने कोना-कोना घुमा दिया
शक़ शुबहा फितूर
सब एक-एक करके मिटा लिया
अब सारे साल खुद की खोज के
यह पचास फौज के
अगले पचास मौज के ।
सुकून के लिए तरसता रहा
जहां-वहां भटकता रहा
खुद से पहल औरों को रखता रहा
औरों के लिए पल-पल मरता रहा
जीना है अब खुद का सोच के
यह पचास फौज के
अगले पचास मौज के ।
जंगल काटे रेत फांकी
बर्फ पहाड़ी बारिश लादी
कष्टों में जिंदगी काटी
वक्त काटेंगे अब सुकून से
यह पचास फौज के
अगले पचास मौज के।
बेवजह डरता रहा
दु:ख में भी हंसता रहा
किस्मत कभी, खुदा कभी
बात उन पर मढ़ता चला
अब जो भी होगा होश से
ये पचास फौज के
अगले पचास मौज के।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
( जम्मू )