कजरी : पिया तोरि कमाई मा न

कजरी : पिया तोरि कमाई मा न

   कजरी : पिया तोरि कमाई मा न

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हम बेहाल भए एक-एक पाई मा,
पिया तोरि कमाई मा न।

लल्लू कऽ लगल बा टोना,
दुरे महंगाई क रोना,हम उछिन्न भए ससुरू कइ दवाई मा,
पिया तोरि कमाई मा न।

ताना मारइं तोहरी अम्मा,
बेटवा निसरि गऽ निकम्मा,
घर-दुआर छोड़ि छुपल बा भिलाई मा
पिया तोर कमाई मा न।

के रहिल्या अबकी अउबइ,
तोहके झुलनी गढ़उबइ,
यहिं अनरसा तक न खा सके जुलाई मा
पिया तोरि कमाई मा न।

कइसे जाई हम बजारे,
टेंटे पइसा न हमारे,
खाली एक चूड़ी बचल बा कलाई मा
पिया तोरि कमाई मा न।

जब से लागल बा सवनवां,
रोज देखी हम सपनवां,
हार दिहेन सजन कजरी कइ गवाई मा,
पिया तोरि कमाई मा न।

बोला -बोला हे सुरेश,
देब्या केतना अब कलेस,
एकरा से जियादा सुख बा घरजवाई में
पिया तोरि कमाई मा न।

हम बेहाल भए एक-एक पाई मा,
पिया तोरि कमाई मा न।

* रचनाकार :  सुरेश मिश्र  (हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक) मुम्बई