देश की प्रख्यात कवयित्री सुमीता प्रवीण की कलम से विशेष प्रासंगिक रचना "नए साल का जश्न मनाएं..."
देश की प्रख्यात कवयित्री सुमीता प्रवीण की कलम से विशेष प्रासंगिक रचना "नए साल का जश्न मनाएं..."
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हर साल आता है नया साल
खुशियों की सौगात लेकर
हर साल देते थे हम बधाई
एक दूजे को मिठाई बाँटकर
अब तो मोबाइल पर ही
हम देने लगे हैं बधाइयां
फोन पर ही एक दूजे को
भेजने लगे हैं मिठाईयां
याद आता है वह बचपन
जब एक दूसरे के घर जाते थे
नए कपड़े पहन एक दूजे की
कुशलक्षेम पूछ आते थे
बाजारवाद की दौड़ में
हम सब हो गए हैं शामिल
पुराने रिवाजों पर चलने वालों को
कहने लगे हैं जाहिल
जबकि कोरोना ने भी है
ये साबित कर दिया
सबने हमारी संस्कृति का
अनुसरण है कर लिया
गले मिले, कभी तो
कभी हाथ मिला लिया
कोरोना ने फिर से हमको
नमस्ते सिखा दिया
आओ फिर से नए साल का यूं जश्न मनाएं
एक दूजे के घर जाएं और रूठों को मनाएं
हमने जो किया, सो किया, अब जाग भी जाएं
नई पीढ़ियों को प्यार का व्यवहार सिखाएं !!
* कवयित्री : सुमीता प्रवीण
( मुम्बई )