कविता : आम ....

कविता : आम ....

        कविता : आम ....

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यह समय 'आम' का है,यह समय काम का है,
गर्मी-चुनाव एक साथ,गुठलियों के दाम का है।

आज आम राजा है,बहुत तरोताजा है,
भाव समझ ही न पाए,भले बजा बाजा है।

आम राम भरोसे है,आम को आम पोसे है,
आम को सब चूसते हैं,आम खाए धोखे हैं।

आम पत्थर खा रहा है,फिर भी देता जा रहा है,
ईश्वर-नेता आम की  परीक्षा लेता जा रहा है।

* रचनाकार : सुरेश मिश्र

(हास्य-व्यंग्य कवि तथा मंच संचालक)