राजेश कुमार लंगेह की कविता : यह मुंबई है मेरी जान...
राजेश कुमार लंगेह की कविता ....
यह मुंबई है मेरी जान...
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यह मुंबई है मेरी जान
दिलों में सिमटा है सारा जहान
यह मुंबई है मेरी जान
आज़ाद फ़िज़ाओं की जवानी है
मेहनतकशों की बेबाक कहानी है
ख्वाब सच भी होते हैं इसकी है पहचान
यह मुंबई है मेरी जान
ख्यालों में अमीरी है
दरवेश सी फकीरी है
चढ़ते सूरज को सलामी है
ना तेरी है ना मेरी मुंबई
हर चीज की नीलामी है
पकड़ कोई राह और चलते चल
सिर्फ दिल की ही मान
यह मुंबई है मेरी जान
समुद्र का आगोश है
बाहर खूब शोर, दिल खामोश है
इक अजब सी हरारत है
हवाओं में शरारत है
जो दिखता है वो बिकता है ले मान
यह मुंबई है मेरी जान
क्या मजहब क्या जात
सबकी पैसे से औकात
लहरों सा मचलता है यह शहर
जागता रहता है दिन रात
कहां सोता है शहर
रख आंखे खुली और खुले कान
यह मुंबई है मेरी जान
हजारों को बनाया है
अर्श पर बिठाया है
जिसने भी जो चाहा है दिल से
कायनात ने दिलाया है
रुकता नहीं झुकता नहीं
रवानगी है इसकी जान
यह मुंबई है मेरी जान
इमारतों का जाल है
बारिश में बुरा हाल है
भटकता रहता है दिनभर इंसा
पर सपनों से मालामाल है
जी भरकर देख सपने
सपनों से ही है जान
यह मुंबई है मेरी जान
दिलों में सिमटा सारा जहान ।
* कवि : राजेश कुमार लंगेह
( जम्मू )