राजेश कुमार लंगेह की कलम से  विशेष कविता : तिरंगा सिर्फ परचम नहीं मेरी रूह है...

राजेश कुमार लंगेह की कलम से  विशेष कविता : तिरंगा सिर्फ परचम नहीं मेरी रूह है...

राजेश कुमार लंगेह की कलम से विशेष कविता ....

तिरंगा सिर्फ परचम नहीं मेरी रूह है...

*****************************

तिरंगा सिर्फ परचम नहीं, मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 
हर रंग शामिल है इसमें 
 मुहब्बत और एतबार की खुशबु है 
तिरंगा सिर्फ परचम नहीं मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 

केसरिया मान है , जान है 
जो बहा खून जंग में , उसकी पहचान है 
कितने मिटे मुल्क पर कितनों का जुनूँ है 
तिरंगा सिर्फ परचम नहीं , मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 

हरा रंग धरती की जान है
धरती की कोख से पनपते , खान पान है 
हरा है तो सब भरा है 
खूबियों की खिलख़िलाहट चारों सु है
 तिरंगा सिर्फ परचम नहीं , मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 

सफेद सच्चाई है, भरोसा है 
अमन-चैन का किस्सा है 
ईमान सौ टका , बेमानी की रत्ती भर भी नहीं बू है 
तिरंगा सिर्फ परचम नहीं , मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 

नीला चक्र हर पल सुधरते हालात की निशानी है 
देख कर परवाज , अपनी दुनिया में हैरानी है 
अर्श पर पहुंचने की सबकी आरजू है 
तिरंगा सिर्फ परचम नहीं , मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है 

एक रंग  लाल है और जो दिखता नहीं है 
खून से लथपथ शहीद को लपेटे 
भारत माँ के आंचल सा 
मौत हो ऐसी, हर सिपाही की आरजू है 
तिरंगा सिर्फ परचम नहीं, मेरी रूह है 
जिसके चर्चे हर सु है।

* कवि :  राजेश कुमार लंगेह
                       (  जम्मू  )