कविता : मुझे मोह लेती हो
कविता : मुझे मोह लेती हो
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मुझे मोह लेती हो
आंखों से टोह लेती हो
छुप जाऊं जितना भी
फिर भी छू लेती हो
जाने कब से कैसे
मुझे मोह लेती हो ।
ताजगी सदाबहार हो
खुशबू की बयार हो
झूठे-सच्चे सपनों में
संग मेरे घूम लेती हो
मुझे मोह लेती हो ।
मुफलसी या अमीरी का जश्न
करती हो सदा मनन
महल हो या मिट्टी की कुटिया
संग मेरे घर हो लेती हो
मुझे मोह लेती हो ।
होश भरती हो , जोश भरती हो
खुशियों की कोख भरती हो
दु:ख-सुख में आंसुओं से
बार-बार भिगो देती हो
मुझे मोह लेती हो।
किरदार पर मेरे जो दाग लगे
सीने पर जो तग्मे सजे
सब एक से एक जैसे
मेरी अंतरध्वनि, मेरी अंतरात्मा
वक्त के साबुन से धो लेती हो
मुझे मोह लेती हो ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )