कजरी : "बरसत बा पानी सखी न"
मुंबई मे अपने पतिदेव के साथ रहने वाली सखी ने गांव की सखी को फोन कर मुंबई मे हो रही बरसात की जानकारी दी ,
प्रस्तुत है इसी पर आधारित एक प्यारी सी कजरी :
"बरसत बा पानी सखी न"
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मोरे मुंबई पे छाइल बा जवानी सखी,
बरसत बा पानी सखी न ।
ताल देखि-देखि झील
करइ 'तीस' वाला फील ।
झील इतराए बनिके नुरानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई---------
नदी षोडसी -सी चले,
नार देखि हाथ मले ।
हवा सनन- सनन चलत बा सुहानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई.................
मेघ लइके नभ सनेस,
करइ धरती क पेश ।
प्रेम पत्र पाइ, धरा भइ दिवानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई....................
थम्हल लोकल क चाल,
भइल सिगनलवा लाल,
लाल टिकुली में फँसल जिंदगानी सखी ।
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई.....................
देखि सरिता क चाल,
भइल सागर निहाल ।
पकडि अँकवारी, करइ छेडखानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई......................
तडतडाए खूब ताड,
मजा लेत बा पहाड,
झरइ झरना मचलि के मनमानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
मोरे मुंबई.....................
जब से आइ मानसून
रोज मनइ हनीमून,
का बताई,पिय सुरेश कइ कहानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।
मोरे मुंबई पे छाइल जवानी सखी
बरसत बा पानी सखी न ।।
* कवि: सुरेश मिश्र (वरिष्ठ हास्य कवि एवम् मंच संचालक ) मुंबई