कविता : मैं तेरी गिरफ्त में हूँ !

कविता : मैं तेरी गिरफ्त में हूँ !
राजेश कुमार लंगेह

 कविता : मैं तेरी गिरफ्त में हूँ !            *****************
मैं तेरी गिरफ्त में हूँ 
तू मेरी आंखों में बसी 
और मैं तेरी जीस्त में हूँ 
आज में भी, कल में भी
आने वाले तेरे हर पल में भी हूँ 
मैं तेरी गिरफ्त में हूँ ।

तेरा स्पर्श , तेरी खुश्बू 
तेरी बाहें , मेरी जुस्तजू 
तेरी सांसों की मदहोश गर्मियां 
तेरे हाथों की नाज़ुक नर्मियां 
मैं नि:शब्द, हैरत में हूँ 
तेरे जिस्मानी गिरफ्त में हूँ 
मैं तेरी गिरफ्त में हूँ।

तेरी बात, मेरी बात 
तेरी जात भी मेरी जात 
मेरे ख्वाब तेरे ख्यालात 
तू शामिल सबमें जैसे आबे हयात              मैं कुछ नहीं सब तू ही तू 
तू मय भी मयकदा भी 
मेरे रब की तू हू-बहू 
तुझे पाके मैं मस्त हूँ 
मैं तेरे ख्यालों की गिरफ्त में हूँ
मै तेरी गिरफ्त में हूँ।

जहां जाऊं, बस तेरी बज़्म 
तू पाक मुहब्बत की उम्दा नज़्म 
सही ग़लत की हो जब कश्मकश
तू ही इकलौता मेरा रूहानी इलम 
 तेरी रूह की ठंडक, रूह की कसक में हूँ 
मै तेरे रूहानी गिरफ्त में हूँ
मै तेरी गिरफ्त में हूँ ।

* रचनाकार - राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू)