डमरू छंद घनाक्षरी : मन तड़पत

डमरू छंद घनाक्षरी : मन तड़पत

   डमरू छंद घनाक्षरी : मन तड़पत...

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( भरी बरसात में प्रियतम परदेश रवाना हो गए। प्रकृति के सारे उपमान विरह वेदना को कैसे बढ़ा रहे हैं )

मन तड़पत, तन अगन लगत मम,
बरसत नयन,मदन लख हरषत।

हरषत जगत,मगन हलधर सब,
घनन-घनन घन थल पर बरसत।

बरसत जलधर,गरजत नवरस,
मदन चलत शर, कर-कर हरकत।

हरकत करत पवन,तन तरसत,
सजन गमन अनवरत जरत मन।

 * रचनाकार :  सुरेश मिश्र (हास्य-व्यंग्य कवि ) मुंबई ...