कविता : चाय सिर्फ चाय नहीं होती

कविता : चाय सिर्फ चाय नहीं होती

    कविता : चाय सिर्फ चाय नहीं होती

    **************************
चाय खास भी चाय आम भी 
चाय नशा भी चाय आराम भी 
चाय सुबह भी चाय शाम भी 
चाय हैसियत भी चाय मुकाम भी 
चाय मशहूर भी चाय बदनाम भी 
चाय आगाज भी चाय अन्जाम भी 
चाय मुहब्बत का एक पैग़ाम भी
चाय की कोई जात नहीं होती 
चाय सिर्फ चाय नहीं होती ।

चाय झोपड़ी में भी चाय महल भी 
चाय सुलह भी चाय पहल भी 
चाय ज़वाब भी चाय सवाल भी 
चाय चर्चा भी चाय बवाल भी 
चाय गुस्सा भी चाय मलाल भी 
चाय की कोई जमात नहीं होती 
चाय सिर्फ चाय नहीं होती ।

जब उलझा उलझा हो जेहन 
जब भटका भटका सा हो मन 
जब टूट जाएं थक हार जाएं 
चुस्की भरो चाय बेजान नहीं होती 
चाय सिर्फ चाय नहीं होती ।

जब दूर तक राह ना नजर  आये 
ले चुस्की चाय की थोड़ा सोचा जाये
मुश्किलों में भी  कितने हल दिख जाएं
लगा होंठो से चाय चेहरा भी खिल जाये
चाय करामात है 
सिर्फ कड़क साँवली नहीं होती 
चाय सिर्फ चाय नहीं होती ।

नसों में घुल जाती है 
तबीयत हिल जाती है 
मकानों को घर बना जाती है 
दुकानों में बहार ले आती है 
चाय सबको करीब ले आती है 
चाय घर में शहर में 
सड़क हो या रेल में                                 लहर पर या हवाई जहाज में 
दुनिया के हर कोने मे 
चाय की कोई सरहद नहीं होती
चाय सिर्फ चाय नहीं होती ।

* राजेश कुमार लंगेह

( बीएसएफ - छत्तीसगढ़ )