गज़ल : बने रहते अगर मेरे

गज़ल : बने रहते अगर मेरे

   गज़ल : बने रहते अगर मेरे ....

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बने रहते अगर मेरे, बात दिल की सुना देते,
तेरी खातिर जख्म अपने, ज़माने से छुपा लेते।

तेरा जाना अगर तय था , इशारा कर दिया होता,
खींच कदमों को पीछे फिर, हम ही पल  में भुला देते।

अगर इक बार कहने का, मुझे मौका दिया होता,
तुझे हसरत तुझे सजदा तुझे दुनिया बता देते।

मेरे ज़ख्मों को संग तेरा, न जाने कितना भाता है,
अभी तक भर नही पाए, अगर आते दिखा देते।

कहां तन्हा है अब 'रजनी', तेरी यादों की महफिल है,
तहेदिल से तमन्ना है कभी तुमको बुला लेते।

*कवयित्री : रजनी श्री बेदी 

        (जयपुर-राजस्थान)