कविता : दर्द दिल के
कविता : दर्द दिल के
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दर्द दिल के सुनाकर मुझे, बोले इनको भुला दीजिए,
खोद के कब्र खुद ही मेरी, संग उनको सुला दीजिए।
जब से किस्से सुने दर्द के, जहन में बस गए इस कदर,
जिंदगी मेरी बीमार है, कोई इसको दवा दीजिए।
कैसे रखूंगी अब हौंसला, बदले रंगों को मैं देखकर,
खो गया है वजूद मेरा, कोई इसका पता दीजिए।
उन लोगों से डरती हुं मै, रंग सबके जो रंग जाते,
रंग पहचानने का हुनर, खुदा मुझको बता दीजिए।
अश्क आंखों से रुसवा हुए, खा के धोखे हुई पत्थर,
आंख भी सूख के बोली, थोड़े आंसू बहा दीजिए।
'रजनी' तकदीर से पूछती, उसके हिस्से में नुकसान क्यों,
खा के थोड़ा तरस उस पर, अब नफा ही नफा दीजिए।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी (जयपुर - राजस्थान)