कविता : व्यथा
कविता : व्यथा
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अश्क आँखों से, मैं बहा ना सकी
ये वो नग़मा है,जो मैं सुना ना सकी
राज़ दिल में है,हज़ारों मेरे
चाह के भी,उसे बता न सकी
कर रही हूँ,ख़ुदा से मैं शिकवा
चाहतें उन पर, क्यूं लुटा ना सकी
मिटा दी यादें,तमाम दुनिया की
शोखियां उनकी मैं,भुला ना सकी
पर्वतों से ,गुनाह लगते हैं
गुनाह जो अपने,मैं जता ना सकी
चिता जलती है,सिर्फ एक ही बार
बार-बार जल के भी,कर बयां न सकी
मर के भी ना मिला सुकून मुझको
मर के 'रजनी' जहाँ से जा ना सकी
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी ( जयपुर - राजस्थान )