कविता : फैसला
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कविता : फैसला
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झुकी नजर है तो ये ना समझो
नजर हमेशा झुकी रहेगी,
तेरी हदों में मेरी जिंदगी
जहां तू चाहे रुकी रहेगी।
मेरी तो हसरत बस इक यही थी
मुझे बनाना था तुझको मेरा,
मगर तुम्हारे गुरुर के संग
रूह तो मेरी दु:खी रहेगी।
मै खुद की सोचूं या रूह की सोचूँ
चल रही मन में कश्मकश है,
फैसला ले समय पे 'रजनी'
तब आग मन की बुझी रहेगी।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
( जयपुर - राजस्थान )