कवि श्री राजेश कुमार लंगेह की कलम से श्रृंगार रस से सराबोर कविता... "कभी कहा था तुमने"

कवि श्री राजेश कुमार लंगेह की कलम से श्रृंगार रस से सराबोर कविता... "कभी कहा था तुमने"

कवि श्री राजेश कुमार लंगेह की कलम से श्रृंगार रस से सराबोर कविता ...  
 
" कभी कहा था तुमने ...."
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कभी  कहा था तुमने
 तुम बहुत हसीन हो 
तुम्हारे बाल रेशमी
 नैन मृग से 
खुशबु कस्तूरी 
सब कुछ वहीं है पर 
आज वो लफ्ज़ कहाँ  हैं
वो प्यार की कसक कहाँ है 
कभी  कहा था तुमने ।

कभी मेरे होंठों पर  तुमने कसीदे पढ़े थे 
थाम कर हाथ मेरा हजारों शेर लिखे थे
कभी देखकर मुझे तुम्हारी
 नजर थम सी जाती थी
आज वो नज़रे- करम कहाँ है 
  वो एहसास कहाँ है 
कभी कहा  था  तुमने  ।

पाकर साथ मेरा तुम्हारी दुनिया हसीन हुई थी 
पढ़कर तुम्हारी नजरों में खुद को 
खुद से जलन हुई थी 
वही मैं हूँ , वही दुनिया पर
 वो बात क्यूँ नहीं है 
कभी तुमने कहा था  ।


कसक सी रहती थी तुम्हें मुझे पाने की 
दूर से आहट हो जाती थी
 तुम्हें मेरे आने  की 
वही पाजेब है वही पैर 
पर वो झंकार क्यूँ नहीं है
कभी तुमने कहा था ।

उठकर रात को घबराकर टटोलते थे मुझको
हाथ पकड़ कर देर तक सोते थे 
वही हाथ ,वही दामन है 
पर वो बात क्यूँ नहीं है 
कभी कहा था तुमने ।

कभी घर सूने लगते थे मेरे बिन 
कभी खाने बेस्वाद बनते थे मेरे बिन 
क्या है जो नहीं है
 सबकुछ तो वही है 
फिर वो बात कहाँ है 
कभी कहा था तुमने ।

कैसी यह अजीब सी घड़ी है 
सब  लोग आसपास हैं 
इतने सारे  , कुछ तो खास है
क्या है जो तुमने छुपाया है 
 कोई  खास दिन भी नहीं
 फिर क्यूँ सबको बुलाया है 
सभी मेरी बातें क्यूँ कर रहे हैं
क्यूँ मुझको लिटाया है
आज कुछ बोलते क्यूं नहीं 
क्यूँ सहमें से खड़े हो 
क्यूँ देखकर मुझको रो पड़े हो
कहते कि मैं तो यहीं हूँ तेरे साथ खड़ी हूँ 
पर सच में वो बात नहीं 
पर सच में वो बात नहीं 
अब एहसास हुआ मैं नहीं हूँ 
दुनिया में नहीं हूँ 
साथ रहना हमेशा ,
साथ रहूंगा तुम्हारी यादों में 
कभी कहा था तुमने ।

* कवि : राजेश कुमार लंगेह
                        ( जम्मू )