कवयित्री अमिता 'अशेष' की कलम से एक विशेष प्रासंगिक कविता : "तू शक्तिस्वरूपा अभयरूप"
कवयित्री अमिता 'अशेष' की कलम से एक विशेष प्रासंगिक कविता :
"तू शक्तिस्वरूपा अभयरूप "
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मृत ना बन अमृत पुत्री, निज जीवन रथ संचालक बन ।
तू शक्तिस्वरूपा अभयरूप,तू विकट विघ्न संहारक बन॥
समय प्रतिकूल हुआ है क्यूँ ,नारी को हीन समझता जग।
तू नीर नयन का श्रोत नही, तू तड़ित मेघ उच्चारक बन॥
याचक बन अस्मिता की अब,भीख मांगना उचित नहीं।
तू नहीं पुष्पदल है दुर्बल , रणचण्डी शर संधानक बन॥
लक्ष्य नहीं मिलते उनको, जो क्लांत शिथिल बैठे पथ में ।
तू विकल यामिनी प्रहर नहीं,तू तेज पुञ्ज की शावक बन॥
छट जाएगा घोर कुहासा, अवसाद तिमिर का एक पल में।
तू तुहिन बिन्दु का अंश नहीं,तू सूर्य किरण की वाहक बन॥
मत माँगो प्रेम अकिंचन से, जो स्वयं अतृप्त रीता घट है।
कस्तूरी निज हृदय बसी,तू आदि प्रणय अभिसारक बन॥
* कवयित्री : अमिता 'अशेष'
( लखनऊ )