अमिता 'अशेष' की कलम से नवरात्र पर विशेष कविता : हे माँ....
अमिता 'अशेष' की कलम से नवरात्र पर विशेष कविता : हे माँ....
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चरण-कमल वंदन करते हैं,
मन - चंदन महकाओ माँ |
दूर लक्ष्य है , पथ विस्मृत है,
दिव्यपुंज दिखलाओ माँ |
धरा त्रस्त और पाप बढ़ा है,
मानवरूपी असुरों से |
शूलपाणि हे महिषविमर्दिनि,
धरामुक्त कर जाओ माँ |
जन्म लिया, देवी कहलाई,
किन्तु सुता तेरी अबला |
घूम रहे निर्द्वन्द दुशासन,
कृष्ण रूप धर आओ माँ |
करती थी उद्धार सभी का,
कल-कल करती जो गंगा ,
आज वही उद्धार मांगती,
नया भगीरथ लाओ माँ |
शेष बचे दिन काट रहे हैं,
रूखे- सूखे टुकड़ों पर |
बुझती आँखों के दीपक को,
श्रवण एक दे जाओ माँ |
भटक रहे हैं मंदिर मस्जिद,
अपने-अपने ईश्वर संग |
मृगतृष्णा बुझ जाए सबकी,
अमृत- घन बरसाओ माँ ||
* कवयित्री : अमिता 'अशेष'
( लखनऊ )