कविता : जज़्बात

कविता : जज़्बात

        कविता : जज़्बात

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जो लिखे जज़्बात मैंने..आसुओं से भरे हुए,
कैसे कह दूं जिंदगी से..वो नही है डरे हुए।।

कितनी है मुस्कान लब पर..शिकन भी माथे पे है,
दिख रहे हैं सबको जिंदा ..भीतर से हैं मरे हुए।

रास आते न किसी को ज़ख्म जो रिसते मेरे,
सूखते भी हैं तो छू के ..फिर से देखो हरे हुए ।

देख सूरत आईने में.. रूह हंसती है मेरी,
छल लिया लोगों ने तुझको.. छल के अब वो परे हुए।

'रजनी' की कुछ ख्वाहिशों को ..नोंचा अपनों ने मगर,
उनकी ही अब कतरनो से..कैसे देखो खरे  हुए।

* कवयित्री :रजनी श्री बेदी
       (जयपुर - राजस्थान)