कविता : कुछ शब्द ही तो हैं
कविता : कुछ शब्द ही तो हैं
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कुछ शब्द ही तो हैं
जिनसे जाना है
तुमने मुझे, मैंने तुम्हें
कुछ शब्द ही तो हैं ।
शब्दों की ही तो लहरें हैं
जो दूर गहरे सागर में ले जाती हैं
दूर-दूर तक ना कोई सीमा
ना ही बंधन
शब्दों से ही मिठास शब्द ही चंदन
कुछ शब्द ही तो हैं ।
हजारों सपने बुन लेता हूँ
शब्दो के धागों से
उलझा रहता हूँ फिर उन शब्दों में
जो कह दिए तुमने या रोक लिए मैंने
कुछ शब्द ही तो हैं ।
कुछ टूटी-फूटी यादों का कबाड़ है
शब्दों का शब्दों से यह कैसा लगाव है
शब्दों का शंख पल पल बजता है
कभी शहद सा, कभी शब्दों से खून खोलता है
शब्दों का तन शब्दों का मन
सब शब्द ही तो ।
शब्दों की सीमा शब्दों ने बांध दी
कुछ शब्दों ने शब्दों की कुर्बानी मांग ली
शब्दों का जाल शब्दों का मलाल
शब्दों का शब्दों से बुरा हाल
शब्दों का भरोसा शब्दों से धोखा
कुछ शब्द ही तो हैं ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह (बीएसएफ)