बाल कथा ... बुजुर्ग का स्नेह
बाल कथा ...
बुजुर्ग का स्नेह
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निशांत के दादाजी को गुजरे हुए कई साल गुजर गए थे ,निशांत अभी 5 साल का छोटा बच्चा था । निशांत जब भी अपनी दादी या पिताजी से अपने दादाजी के बारे में पूछता तो सभी यही कहते थे कि वे भगवान जी के पास चले गए हैं।
एक रात के समय अपनी मां के पास जब वो सो रहा था तभी बैठक से कुछ आवाजें आने लगीं, जिससे अचानक निशांत की आंखें खुल गई ।
निशांत दबे पांव बैठक की तरफ बढ़ गया। उसे बैठक में घर का कोई सदस्य नजर नहीं आया। तभी उसकी नजर सोफे पर बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति पर गई जो हाथ में गीता लेकर पाठ कर रहे थे ।
"आप कौन हो ? और यहां हमारे घर पर क्या कर रहे हो ?" निशांत ने उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा तो उन्होंने कहा "बेटा मैं तुम्हारा दादाजी हूं और मैं तो रोज यहां पर बैठकर गीता का पाठ करता हूं ।पर तुम घर पर किसी को कुछ मत बताना हम लोग रोज रात में यहीं पर बैठकर बातें किया करेंगे।"
अब तो निशांत को रोज रात होने का इंतजार लगा रहता था और वह रोज देर रात बैठक में बैठकर दादा जी के साथ गीता का पाठ किया करता था ।
एक रात जब निशांत बैठक में गया , तभी उसकी मां की नींद भी खुल गई और उसकी मां उसके पीछे-पीछे बैठक तक चली आई।
उसने देखा कि निशांत किसी से बातें कर रहा था, पर वह बुजुर्ग व्यक्ति उसकी मां को दिखाई नहीं दे रहे थे ।
"निशांत बेटा , तुम इतनी रात में किससे बातें कर रहे हो ?" उसकी मां ने निशांत से पूछा ।
"मां , मैं तो रोज यहां बैठकर रात में अपने दादाजी से बातें करता हूं ,वह मुझे रामायण की और गीता की अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं।" निशांत ने उत्तर दिया।
यह सुनकर उसकी मां की आंखों में आंसू छलक उठे । मन ही मन वह सोच रही थी कि ऐसा होता है बड़े बुजुर्ग का प्यार , जब निशांत दुनिया में नहीं आया था, तब ऊसके दादाजी की ख्वाहिश थी कि अगर बच्चा पास रहता तो मैं उसके साथ खेलता ,उसको बहुत सारी ज्ञान की बातें बताता और वह इस काम को दुनिया से जाने के बाद भी कर गए थे।
* लेखिका : कविता सिंह
( नोएडा_ गौतम बुद्ध नगर)