कविता : हमको कुछ नहिं आता

कविता : हमको कुछ नहिं आता

 कविता : हमको कुछ नहिं आता         ----------------------------

दया करो हे वृषभ वाहिनी
शैलपुत्री जग माता।
जप तप योग नियम विधि पूजा,
हमको कुछ नहिं आता माता।
हमको कुछ नहिं आता।।

बायें कर सोहे कमल फूल, मन मोहे त्रिशूल कर दायें,
वृषभऽऽरूढ़ नयन मदनारे, भगतन के मन भाये ।।

कोई गौरी गिरजा अंबा पार्वती गोहराता,
नाम अनंत तोहार भवानी वेद पुराण है गाता माता।
हमको कुछ नहिं आता।।

केहि विधि घट बैठाऊं सुनाऊं मंत्र आरती माता,
तूं घट घट में सर्वव्याप्त है,
यश त्रिलोक विख्याता माता।
हमको कुछ नहिं आता।।
 
अनपढ़ निपट अनाड़ी मैं हूं बालक तेरो माता,
दुर्गुण भरा है तनमन मेरे 
न वेद पुराण का ज्ञाता माता।
हमको कुछ नहिं आता।।

दिवस रात में भेद न जानूं
जीवन तम कूप घनेरा।
जो मन भावै सोइ सोई करता चंचल मन मेरा माता।
हमको कुछ नहिं आता।।

तेरा हृदय दया का सागर
हो तूं ममता की मूरत,
तेरा आंचल जिसके सिर होवे,
वह तेरा पूत कहलाता माता।
हमको कुछ नहिं आता।।

अमृतमय स्पर्श तुम्हारा पाऊं मन ललचाता,
अनुज अकेला बुद्धिहीन है दया करो जग माता ।।
क्षमा करो जग माता।।
हमको कुछ नहिं आता।।

*कवि : शास्त्री सुरेन्द्र दुबे

            "अनुज जौनपुरी"

                   (  मुंबई )