केरल के दक्षिण-पश्चिमी घाट में 'डैमसेलफ्लाई' प्रजाति की महत्वपूर्ण खोज !
केरल के दक्षिण-पश्चिमी घाट में 'डैमसेलफ्लाई' प्रजाति की महत्वपूर्ण खोज !
_विशेषज्ञों ने दिया क्लाइमेट एक्शन की तत्काल ज़रूरत पर बल
* संवाददाता
मुंबई, 03 अक्टूबर : एमआईटी-डब्ल्यूपीयू के शोधकर्ताओं ने, दुनिया का परिचय 'आर्मागेडन रीडटेल-प्रोटोस्टिक्टा आर्मागेडोनिया' से कराया, जो डैमसेलफ्लाई की एक नई खोजी गई प्रजाति है। यह एक उल्लेखनीय खोज है, जो हमारे ग्रह के पारिस्थितिक तंत्र की गंभीर स्थिति पर रोशनी डालती है। यह नई प्रजाति, अपने मनहूस उपनाम के साथ, बड़े पैमाने पर वास-स्थान (हैबिटैट) के नुकसान और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारी दुनिया के सामने आने वाले पारिस्थितिकी संबंधी संकट की याद दिलाती है। विशेषज्ञ, इस खोज का उपयोग वैश्विक नेतृत्व से पहल करने के लिए आह्वान के रूप में कर रहे हैं, जो उनसे ग्लोबल वार्मिंग के तात्कालिक मुद्दों और जैव विविधता पर उनके विनाशकारी प्रभाव को दूर करने लिए प्रयास करने का आग्रह कर रहे हैं।
इस नई प्रजाति के रहस्योद्घाटन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित वर्ल्डवाइड ड्रैगनफ्लाई एसोसिएशन से संबद्ध एक प्रकाशन, प्रतिष्ठित इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओडोनेटोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा, इस खोज को ज़ूओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पुणे कार्यालय में सावधानीपूर्वक दर्ज और पंजीकृत किया गया है, जो वैज्ञानिक समुदाय में इसके महत्व को रेखांकित करता है। इस साहसी अभियान दल में शामिल एमआईटी-डब्ल्यूपीयू के पर्यावरण अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पंकज कोपार्डे की विशेषज्ञता, एमआईटी-डब्ल्यूपीयू के एक समर्पित पीएचडी स्कॉलर अराजुश पायरा की अनुसंधान क्षमता, एमआईटी-डब्ल्यूपीयू में एमएससी पर्यावरण विज्ञान के छात्र, अमेय देशपांडे का उत्साह और केरल के अनुभवी वन्यजीव फोटोग्राफर रेजी चंद्रन की पैनी नज़र की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि में महत्वपूर्ण भूमिका रही।
नई मिली प्रजाति का आकर्षक गहरे भूरे से काले रंग का शरीर होता है, जीवंत हरी-नीली आंखें होती हैं, और इसके आठ पेटिका खंडों (अब्डोमिनल सेगमेंट) में से आधे पर नाजुक से हल्के नीले रंग के निशान होते हैं। इसका विशेष वास स्थान, प्राथमिक पर्वतीय धाराएँ (मोंटेन स्ट्रीम) हैं, जहां यह घने छत्र (कैनोपी) के आवरण के नीचे पनपता है। आर्मागेडन रीडटेल नाम "इकोलॉजिकल आर्मगेडन" की अवधारणा से जुड़ा है। दुनिया भर में, इस शब्द का कीड़ों की आबादी में विनाशकारी गिरावट का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस घटना को, जिसे अक्सर "कीट सर्वनाश" (इन्सेक्ट एपोकेलिप्स) कहा जाता है, जिसका पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर दूरगामी परिणाम होते हैं, क्योंकि कीड़े परागण, पोषक तत्व चक्र और अन्य जानवरों के लिए भोजन स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डॉ.पंकज कोपार्डे, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रमुख शोधकर्ता-आर्मागेडन रीडटेल, एमआईटी-डब्ल्यूपीयू कहते हैं,“इस नई प्रजाति का नामकरण केवल एक अकादमिक अभ्यास नहीं है; यह ध्यान आकर्षित करने की एक हताश अपील है। जिस तरह यह प्रजाति अपने वास स्थान के नुकसान और बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है, उसी तरह अनगिनत अन्य स्थानिक (एंडेमिक) और लुप्तप्राय कीड़े हमेशा के लिए गायब होने के कगार पर हैं। हम एक पारिस्थितिक तबाही के मुहाने पर खड़े हैं और इस स्थिति को पलटने के लिए तत्काल पहल करने की ज़रूरत है। हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने और हमारे ग्रह की जैव विविधता की रक्षा के लिए वैज्ञानिकों, संरक्षणकर्ताओं, नीति निर्माताओं और जनता को शामिल करते हुए एक सहयोगात्मक प्रयास करने की ज़रुरत है।
श्री रेजी चंद्रन, प्रमुख वन्यजीव फोटोग्राफर और टीम के सदस्य, जिन्होंने सबसे पहले इस प्रजाति को देखा, ने डॉ. कोपार्डे की भावनाओं को दोहराते हुए कहा,"मैंने बड़े पैमाने पर विकास (डेवलपमेंट) और वास स्थान के नुकसान के कारण पश्चिमी घाट के जंगलों में तेजी से होते बदलाव को देखा है। आर्मागेडन रीडटेल की खोज उस व्यापक संकट का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करती है, जिसका हम सामना कर रहे हैं और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें इसके बारे में कुछ करने की ज़रूरत है।
पीएचडी स्कॉलर, एमआईटी-डब्ल्यूपीयू, कीट विज्ञानी और प्रमुख लेखक, अराजुष पायरा ने कहा,"नई प्रोटोस्टिक्टा प्रजाति विभिन्न रूपात्मक विशेषताओं (मॉर्फोलोजिकल फीचर) के आधार पर अपने कोजेनेरर से अलग है। इसे उन सब से अलग कर पाना कठिन काम था लेकिन अब हमारे पास इसके वर्गीकरण (टेक्सोनॉमी) के बारे में स्पष्टता है। मेरा मानना है कि हमारी खोज भारतीय ओडोनेटोलॉजी में एक मील का पत्थर साबित होगी।“
आर्मागेडन रीडटेल का मामला, हमारे लिए एक गंभीर चेतावनी की याद दिलाता है कि हम एक दोराहे पर खड़े हैं। अब हम जो विकल्प चुनेंगे, वह अनगिनत प्रजातियों के भाग्य और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह के स्वास्थ्य का निर्धारण करेगा। यह ऐसी पहल करने का आह्वान है, जिसकी बात न केवल वैज्ञानिक समुदाय के भीतर, बल्कि हमारी दुनिया के भविष्य के बारे में चिंतित हर व्यक्ति करता है।