मध्य रेलवे के जोनल रेलवे यूजर्स कंसल्टेटिव कमेटी सदस्य डॉ. मनोज दुबे ने रेल मंत्री को लिखा पत्र 

मध्य रेलवे के जोनल रेलवे यूजर्स कंसल्टेटिव कमेटी सदस्य डॉ. मनोज दुबे ने रेल मंत्री को लिखा पत्र 

मध्य रेलवे के जोनल रेलवे यूजर्स कंसल्टेटिव कमेटी सदस्य डॉ. मनोज दुबे ने रेल मंत्री को लिखा पत्र 

_ भारतीय रेलवे के ट्रैक मैनों की मांगों को जल्द पूरा करने की की है डिमांड 


* विशेष संवाददाता


    भारतीय रेलवे के ट्रैक मैनों की मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की डिमांड को लेकर मध्य रेलवे के जोनल रेलवे यूजर्स कंसल्टेटिव कमेटी के सदस्य डॉ. मनोज दुबे ने रेल मंत्री को पत्र लिखा है।

      डॉक्टर दुबे के अनुसार रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेश अंतर्गत सुधारित ट्रैक मेंटेनर केडर रिस्ट्रक्चरिंग को तत्काल लागू नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण अधिकाधिक ट्रैक मेंटेनर कर्मचारियों को पदोन्नति के अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं।
(रेलवे बोर्ड पत्र संख्या 2015/CE1/GNS/2 दिनांक 8/3/2019)

   इसके अलावा ज्यादातर डिवीजन में लगभग 10 साल से रिस्ट्रक्चरिंग नहीं हुआ है जिसके कारण ट्रैक मेंटेनर विभागीय पदोन्नति नहीं हो पाई।

    डॉक्टर दुबे के अनुसार इंजीनियरिंग विभाग के ट्रैक मैंटेनर कर्मचारी,आर्टिसन एवं आर्टिसन हेल्पर कर्मचारियों को रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेशानुसार सुधारित रिस्क एवं हार्ड ड्यूटी भत्ते का तत्काल भुगतान नहीं किया जा रहा है। अगस्त-2018 में रेलवे बोर्ड द्वारा आदेश जारी होने के बाद भी अभी तक इस संदर्भ में कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। 
(बोर्ड पत्र संख्या PC-VII/ 2018/l/7/5/2 दिनांक 28/08/2018)

    डॉक्टर मनोज दुबे ने पत्र में आगे लिखा है कि इजीनियरिंग विभाग के गेटकीपर कर्मचारियों से ज्यादातर रेलवे जोन के विभिन्न मंडलों में 12-12 घंटे की ड्यूटी करवाई जा रही है, जब कि RAILWAY SERVANTS (HOURS OF WORK AND PERIOD OF REST RULES,2005 PART-II POINT No.8/4/१&२) अनुसार गेटकीपर कर्मचारियों को यदि उनके कार्य स्थल से 0.5 km के अंतर में आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है तो उन्हें 24 घंटे अतिरिक्त रेस्ट देना जरूरी है। लेकिन भारतीय रेलवेे में अधिकांश स्थलों पर इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है।
 वर्तमान में कर्मचारियों की रिक्तियों (Vacancy) को देखते हुये यदि 24 घंटे का इनको अतिरिक्त रेस्ट नहीं दिया जा सकता है तो उन गेटकीपर कर्मचारियों को उनके अतिरिक्त कार्य समय के लिए ओवर टाइम भत्ता प्रदान दिया जाना चाहिए । परंतुु रेलवे महकमा द्वारा सारे नियम व कानून को ताक पर रखकर इन कर्मचारियोंं से 12 घंटे कार्य कराया जा रहा है जो सर्वथा अनुचित है।

    डॉक्टर दुबे के पत्र में आगे जिक्र है कि  रेलवे बोर्ड द्वारा जारी आदेशानुसार ट्रैक मैंटेनर कर्मचारियों को प्रति वर्ष (जनवरी से जून-01 और जुलाई से दिसम्बर-01 कुल 02 जोड़ी) 02 जोड़ी सैफ्टी शूज प्रदान करना होता है। ट्रैक मैंटेनर कर्मचारियों को वर्ष 2017 से 2020 तक 02 जोड़ी प्रति वर्ष के हिसाब से कुल 08 जोड़ी सैफ्टी शूज मिलना चाहिए था । जब कि अभी तक सिर्फ ज्यादातर मंडलों में एक या दो जोड़ी जूते ही इनको मिल सके हैं। वर्ष 2017 से 2020 तक ना इन्हें कोई जूते दिए गए और ना ही रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित राशि रु.1400/- प्रति जोड़ी मतलब एक साल में 1400 x 2 = रु .2800 राशि मिलनी चाहिए थी, परंतु अभी तक ना इन्हें जूते मिले हैं और ना ही किसी प्रकार का भत्ता प्रदान किया गया है। 
(रेलवे बोर्ड पत्र संख्या 2017/transf.cel/CIVIL/O3 दिनांक 05.02.2018 )               

     पत्र में इसके आगे उल्लेख है कि भारतीय रेलवे ट्रैक मेंटेनर को दिया जाने वाले सैफ्टी शूज की गुणवता और उसका मूल्य संदेह का विषय है । अतः इस विषय को गंभीरता पूर्वक लिया जाए क्योंकि ट्रैक मेंटेनर कर्मचारियों को दिए जाने वाले सेफ्टी शूज में भ्रष्टाचार की बू आ रही है ।  रेलवे के कुछ अधिकारी आपस में मिलकर ट्रैक मेंटेनर को नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर कर रहे हैं।

        पत्र के अनुसार भारतीय रेलवे के ट्रैक र्मेटेनर कैडर को रेनकोट,विंटर जैकेट एवं टूल्स इत्यादि का वितरण समय से नहीं किया जाता है। रेलवे बोर्ड से आदेश जारी होने से अब तक केवल एक से दो बार विंटर जैकेट दिए गये , जिनकी गुणवता भी ठीक नहीं है। रेनकोट, कुछ मंडल में एक से दो बार एवं कई मंडलों में अभी तक नहीं दिया गया है , जबकि रेल बोर्ड के आदेश अनुसार एक वर्ष में दो बार सेफ्टी शूज,दो वर्ष में एक बार विंटर जेकेट तथा एक वर्ष में एक रेनकोट देने का प्रावधान है । इस दौरान ट्रैक मेंटेनर,आर्टिजन तथा हेल्पर ने ड्यूटी के दौरान सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सैफ्टी शूज विंटर जेकेट तथा रेनकोट बाजार से खरीदकर बिना किसी बाधा के अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है। उक्त सेफ्टी किट की टेंडर प्रक्रिया शायद डिवीजन तक हो रही है जिसमें बहुत बड़ा घोटाला किया जा रहा है एवं ग्रुप डी कर्मचारी ट्रैक मेंटेनर को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इसके साथ_साथ ध्यान देने योग्य है कि भारतीय रेलवे में ट्रैकमैंटेनर के ऑन रिक्वेस्ट स्थानांतरण प्रार्थना - पत्र जिन कर्मचारियों का सामने के मंडल रेलवे से NOC आ चुकी है उनको पिछले कई वर्षों से रिलीव नहीं किया जाता है । जिससे यह कर्मचारी वर्ग अपनी जिंदगी परिवार से दूर ही बिता रहा है।

    पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि भारतीय रेलवे के ट्रैक मेंटेनर की सीनियारिटी ज्यादातर SSE कार्यालय के अधीन यूनिट में गणना की जाती है एवं अन्य विभाग के कर्मचारियों की सिनियारिटी मंडल कार्यालय के अधीन गणना की जाती है जिससे उनका प्रमोशन इमानदारी से तुरंत ही हो जाता है। जबकि ट्रैक मेंटेनर कर्मचारी हमेशा जिंदगी भर प्रमोट होने का इंतजार करता रह जाता है।

   भारतीय रेलवे के ट्रैक मेंटेनर को लंच समय सहित लगभग 12 घंटे से भी ऊपर कार्य करवाया जा रहा है। यह कर्मचारी अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय फील्ड वर्क के दौरान हेड क्वार्टर से दूर बिताता है इन्हें अपना लंच भी रेलवे ट्रैक के आसपास गंदगी में ही करना पड़ता है क्योंकि रेलवे द्वारा फील्ड में इनको लंच एवं रेस्ट रूम की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

     सभी विभाग के ग्रुप डी कर्मचारियों को कैरियर प्रमोशन के तहत 4200 के ग्रेड तक प्रमोशन प्राप्त होता है जबकि रेलवे की कथित गलत पॉलिसी के कारण ट्रैक मेंटेनर को अपनी पूरी जिंदगी 1800 ग्रेड पे से 2400 तक या फिर लास्ट 2800 ग्रेड पर रिटायरमेंट दे दिया जाता है। सबसे ज्यादा काम और सबसे कम प्रमोशन यह दुनिया में भारतीय रेलवे के ट्रैक मेंटेनर पर लागू होता नजर आ रहा है।

      पत्र में डॉक्टर दुबे ने आगे जिक्र किया है कि आजकल निजीकरण एवं निगमीकरण के तहत भारतीय रेलवे में ज्यादातर कार्य निजी टेंडर प्रक्रिया के तहत करवाया जाता है परंतु भारतीय रेलवे के ऑफिसरों द्वारा टेंडर प्रक्रिया का कार्य कथित रूप से ट्रैक मेंटेनरों द्वारा करवाकर एवं टेंडर प्रक्रिया के ठेकेदार से मिलकर उन रुपयों को आपस में बांट लिया जाता है। ट्रैक मेंटेनर को शारीरिक एवं मानसिक दबाव दिया जाता है जिससे वह अपने जीवन काल को कमतर मानकर लगातार कार्य करता रहता है। सबसे बड़ा इसका दुष्परिणाम ट्रैक मेंटेनर के परिवार पर पड़ रहा है।
    पूरे भारतवर्ष में सेवा के दौरान ट्रैक मेंटेनर को सबसे ज्यादा यातनाएं झेलनी पड़ती हैं क्योंकि कहने भर को यह सरकारी कर्मचारी है जो सर्दी,गर्मी एवं बरसात के विपरीत मौसम के बावजूद जंगल, पहाड़, रेगिस्तान,नदी-नाले आदि के पास अपनी ड्यूटी इमानदारी से लगातार करता रहता है। इसके बावजूद भी इस कर्मचारी को छोटी गलती पर भी बड़ी विभागीय कार्यवाही से गुजरना पड़ता है।

   भारतवर्ष जब मिशन मंगल, चंद्रयान या अन्य प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोगों से लगातार दूसरे ग्रहों की तरफ बढ़ रहा है और रोज-रोज नए नए अविष्कारों की खोज कर रहा है वहीं भारतीय रेलवे का ट्रैक मेंटेनर कर्मचारी बिना कोई इस प्रकार के उपकरण (जिससे कि उसे ज्ञात हो जाए की ट्रेन मेरे पास आनेवाली है और मैं ट्रैक से बिल्कुल बाहर हो जाऊं ) जैसे यंत्र से अभी भी दूर है ,जिससे आए दिन ट्रैकमैन लगातार रन ओवर हो रहे हैं और अपने परिवार को दुखों भरी इस दुनिया में छोड़कर भारतीय रेलवे के लिए अपनी जान न्योछावर कर रहे हैं। क्या यह रेल प्रशासन की कमी नहीं है ? अभी भी प्रत्येक वर्ष देशभर में लगभग 500 ट्रैक मेंटेनर अपनी जान ट्रैक के बीच में गंवा रहे हैं!

      डॉक्टर दुबे के अनुसार वर्तमान में प्रायोगिक तौर पर भारतीय रेलवे द्वारा रक्षक यंत्र का ट्रैक मेंटेनर को रेलवे ट्रेन से बचने के एहतियात के तौर पर प्रयोग में लाना शुरू करवाना था ,परंतु उसको भी अभी तक इस कर्मचारी तक नहीं पहुंचाया गया है। शायद कहीं उसमें भी भ्रष्टाचार के महा घोटाले का खाका तो तैयार नहीं किया जा रहा है, जिस पर रेल मंत्री जी को ध्यान देना होगा।