कविता : बसंत आया ....
कविता : बसंत आया ....
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बसंत आया,
खुशियां संग अपार लाया,
नाचें गाएं ।
पलाश खिले,
वन - वन -टेसुआ फुले,
हरसिंगार मुस्कुराए।
कोयल इठलायी,
श्यामला सखी धरनी हंसी
सरसों फूली।
माता सरस्वती,
आपके अवतरण दिवस पर, अभिनंदन अभिनंदन।
कवि कहता,
वासंती पवन घर आना,
होली खेलना।
प्रकृति खुशियां
प्रदान करने बहाना ढूंढती
बंसत देती।
हरियाली बिखरती,
भंवरें मंडराते फूलों पर,
बगिया गुनगुनाती।
हवा- तितलियाँ,
सब रंग गए फागुन,
कालिदास - ऋतुराज ।
कविता करने,
लगे फूल गंध संग,
मंजरिया महकी।
मैल धुला
मन - घर - आंगन - बने
श्रीराधा - श्रीकृष्ण।
सोंधी - सोंधी,
खुशबु माटी महकने लगी
पवन इठलाई।
केसरिया पगड़ी,
बसंती चोला पहन कर
देशभक्ति गुंजी।
बसंत आया
मन वृंदावन बन गया
बांसुरी बजी।
श्रीराधा - श्रीकृष्ण
गोप - गोपिया यमुना तट
प्रेम पगे।
कंदब तले,
वैजयंती गले धारण किये
पीला पीताम्बर।
आओ रंगे,
नीले - पीले रंगो संग,
बसंत - होली।
* कवयित्री : डॉ. मंजू लोढ़ा
(मुम्बई)