राजेश कुमार लंगेह की कलम से कविता : चक्र

राजेश कुमार लंगेह की कलम से कविता : चक्र

राजेश कुमार लंगेह की कलम से ....

                 कविता :   चक्र

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अदा जिसकी ज़ुदा है 
जीने की वज़ह है 
हर मर्ज का इलाज उसके पास 
हर तकलीफ़ की दवा है 
पिता,अब्बा,डैडी,बापू सब नाम उसके 
दुनियां उसी से रवां है 
बारह साल तक वो खुदा है 
बच्चों का मेहरबां है 
हर सवाल का जवाब वो 
हर वक़्त की हवा वो 
टूटते तारों को जोड़ सकता जो 
तूफानों को रोकने की जुर्रत जिसमें 
बच्चों की उम्मीद है वो 
हर जिद्द की तामील है वो 
सबसे बेहतर समझे तुमको जो 
ऐसा रहबर है वो 
अदा जिसकी ज़ुदा है 
जीने की वज़ह है 
हर मर्ज का इलाज उसके पास 
हर तकलीफ़ की दवा है ------


जवानी में तुम्हारी लगता वो सौदाई है 
बेवजह  हमेशा उलझता तुमसे 
ऐसा वो हरजाई है 
लगे तुमको समझता नहीं 
कैसी सोच उसने बनाई है 
वक़्त बदल गया वो वहीं रह गया 
कैसी  उसने हालत बनाईं है 
हाँ सच में वो सौदाई है 
अदा जिसकी ज़ुदा है 
जीने की वज़ह है 
हर मर्ज का इलाज उसके पास 
हर तकलीफ़ की दवा है ------


अब उम्र ढ़ल चुकी है उसकी 
फिर भी क्यूँ भटकता है 
एक एक पैसे के लिए क्यूँ 
अब भी क्यूँ झगड़ता है 
सब है पास अपने 
क्या शोहरत क्या कमाई 
फिर भी उसने क्यूँ ऐसी हालत बनाईं 
चैन नहीं उसको क्यूँ 
क्या उसका छूटा है 
क्या किया मैंने अब जो मुझसे रूठा है
 अदा जिसकी ज़ुदा है 
जीने की वज़ह है 
हर मर्ज का इलाज उसके पास 
हर तकलीफ़ की दवा है ------


आज वो भी हो गया 
बिस्तर के बस हो गया 
हजारों मर्ज़ घेरे उसको 
बस दवाइयों का हो गया 
धीरे धीरे बेज़ुबान वो हो गया 
जिसके मजबूत बाज़ुओं ने खिलाया मुझे 
आज वो हड्डियों का पुतला 
एक बोझ सा हो गया
वो रहबर वो खुदा वो सौदाई वो बोझा मेरा 
मुझसे अलविदा कह गया 
छोडकर सब मेरे लिए अलविदा कह गया 
बिछड़कर उससे यह एहसास होता है 
बाप आखिर बाप होता है 
बाप क्या होता है आज समझ पाया 
देख कर बच्चा अपना मन में जब इतराया 
मैं भी इसका रहबर ,खुदा, सौदाई, बोझ रहूँगा 
एक दिन मैं भी बाप का फर्ज अदा करूंगा 
समेट कर दुनिया की दौलत शोहरत 
विरासत  में सब नाम उसके करूँगा
 सच में बाप, बाप होता है 
जितना सब किया उसने मेरे लिए 
कहां मुझसे होता है----

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह

                          ( जम्मू  )