कविता : दर्द भरे जज़्बात
कविता : दर्द भरे जज़्बात
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भटका रहे हैं रास्ता..मंज़िल दिखाने वाले।
भटकेंगे मगर एक दिन.. मुझको हराने वाले।
पीते तो खुद हैं पानी..देते शराब हमको,
बख्शे वो कैसे जाएंगे..मुझको पिलाने वाले।
करते हैं जो वो साज़िश..वाकिफ हैं हम सभी से,
हँस वो भी कैसे पाएंगे.. मुझको रुलाने वाले।
ओढ़े नकाब दुश्मन..बन के हितैषी मेरे,
कैसे छुपे खुदा से..खुद को छुपानेवाले,
मैयत पे मेरी आँसू..झूठे बहा रहे थे,
महफ़िल सजा रहे अब.. मुझको जलाने वाले।
मारे हैं तुमने खंजर..
झुकी जब भी तेरे आगे,
तू भी ना उठ सकेगा..मुझको झुकाने वाले।
मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े.. बिखरे है काँच जैसे,
ज़ख्मी तो होंगे हाथ सब.. इनको उठाने वाले।
गुजरोगे तुम भी इक दिन..
इस राह पे "रजनी" कहती,
आएँगे याद जुर्म सभी.. मुझको सताने वाले।
* कवयित्री:रजनी श्री बेदी
(जयपुर-राजस्थान)